यह गरिमा केवल मनुष्य को प्राप्त है कि वह अंधकार से प्रकार की ओर यात्रा कर सके और जीवन की परम धन्यता को उपलब्ध हो सके। मनुष्य को देह मिलने तक तो वह प्रकृति के अधीन बिना किसी प्रयास के विकसित होता चला जाता है। पर इसके बाद अब और स्वत विकास नहीं होगा। अब उसे सचेतन विकास करना होता है। यहीं आकर उसे यह स्वतंत्रता मिली है कि वह चाहे तो विकास करे, न चाहे तो विकास न करे। यह चुनाव की स्वतंत्रता अपने आप में मनुष्य का परम गौरव है, परम सम्मान है जो परमात्मा ने उसे दिया है किंतु यदि वह विकास न करे तो यही उसका दुर्भाग्य भी बन जाता है। ISBN10-8171828590