अथर्वेद

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भारतीय अध्‍यात्‍म-मनीषा के द्वारा प्रतिपादित ज्ञान, कर्म, उपासना में से ज्ञानकाण्‍ड का ग्रंथ है- अथर्ववेद। यह चार वेदों में से चतुर्थ वेद है। आयुर्वेद इसका उपवेद है। अथर्ववेद का मुख्‍य विषय आत्‍म–परमात्‍म ज्ञान है। इसके अध्‍ययन से मनुष्‍य अपनी अन्‍तर्निहित शक्तियों का ज्ञान प्राप्‍त करके उनके विकास एवं उपयोग-प्रयोग से ऐहित-पारलौकिक उन्‍नति साध सकता है तथा साधन के द्वारा परमात्‍मा को भी प्राप्‍त कर सकता है।
अथर्ववेदकार महामना महर्षि अथर्वा ने जहां अथर्व वेद में आत्‍मा, परमात्‍मा, विराट, व्रात्‍य, जगत् एवं जगत् में व्‍याप्‍त इक्‍कीस पदार्थादि का वर्णन किया है, वहीं मानव-जीवन के लिए आवश्‍यक सभी विद्याओं, कलाओं, साधनों एवं ज्ञान का प्रतिपादन भी किया जाता है।
जीवन के लिए उपयोगी ज्ञान एवं शिक्षाएंतथा उपदेश अथर्ववेदमें यंत्र-तत्र-सर्वत्र उपस्थिति मिलते हैं। बु‍द्धि वर्धक उपाय, वीर्यरक्षा, ऐश्‍वर्य-साधनों की वृद्धि, परस्‍पर सहयोग- वृद्धि, पतन के कारणों का दूरीकरण, गर्भाधान, मुंडन, अन्‍त्‍येष्टि आदि संस्‍कार, सभा में जय कलहशान्ति के उपाय, समय पर वर्षा कराने के उपाय, देश-विदेश में व्‍यापार- वृद्धि, ॠणाविमोचन, अभिचार-निवारण, यज्ञ-प्रक्रिया, शत्रु सेना का मोहन एवं उच्‍चाटन, कृत्‍यानिवारण, राजा के कार्य आदि बहुतकुछ और सब कुछ अथर्ववेद में है।

अथर्वेद-0
अथर्वेद
175.00

Atherveda

Additional information

Author

Dr. Raj Bahadur Pandey

ISBN

8171826687

Pages

128

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8171826687