Insaf
इंसाफ
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किस्मत ने बेचारी को कहां ला पटका था, पत्थरों के ढेर पर। एक हाथ में हथौड़ा था, दूसरे में पत्थर! पत्थर तोड़कर गिट्टी बना रही थी। पत्थर तोड़ने की मजदूरी करना उष्मा की विवशता थी, न तोड़ती तो खाती क्या? पेट भरने का अन्य कोई जरिया ही न था। घर से प्रातः आठ बजे आती, सारा दिन पत्थर तोड़ती। सायंकाल छह बजे के बाद घर जाती। आज भी सवेरे से ही पत्थर तोड़ रही थी। अब तो दोपहर के साढ़े बारह-पौने एक बज रहा था। जेठ की चिलचिलाती धूप में पत्थर तोड़ती, तो कभी दम भरने लगती। वसुंधरा भी आग की लपटें उगल रही थी। इस कड़ी धूप में मानो समूचा मानव सूख जाए। ऐसे में आसमानी छत के नीचे पत्थर तोड़ना सबके वश का रोग नहीं था, लेकिन उष्मा की यह आदत अब पक गई थी। बीस-बाइस साला तरुण नारी थी, नवयौवन चढ़ती आयु, घर बसाने और खेलने-खाने के दिन थे पर उष्मा को दो घड़ी भी सुख नसीब न हुआ।
किसी का नसीब कब पलट जाए। वह रंक से राजा बन जाए, कोई नहीं कह सकता। उष्मा को तपकर सोना बनने में वक्त जरूर लगा पर एक बार निखर जाने के बाद उसने सफलता की बुलंदियों को छुआ। —और उसने वो मुकाम हासिल किया जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता था। जीवन के उतार चढ़ाव को उकेरती कहानी में लेखक डॉ- जगदीश प्रसाद वर्मा ने अपनी कल्पना से ऐसा रंग भर दिया जो हर पाठक को शुरू से लेकर अंत तक अपने सम्मोहन में बांधे रखता है।
Additional information
Author | Dr. Jagdish Praksad Verma |
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ISBN | 9789351658849 |
Pages | 48 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 9351658848 |