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एक भारत श्रेष्ठ भारत

250.00

नरेंद्र मोदी एक व्यक्तित्व ही नहीं बल्कि विकास का पर्याय हैं। सबको साथ लेकर एवं सभी को एकता के सूत्रा में पिरोकर समग्र विकास उनका लक्ष्य है। वे गरीबी का अर्थ भी समझते हैं और दर्द भी। गरीबी को मात्रा मन की अवस्था बताने वालों की सोच के प्रति चिंतित दिखाई पड़ते हैं तो दूसरी ओर एक ऐसे सुशासन के लिए कटिबद्ध हैं जिसमें हर थाली के लिए रोटी हो। यह तभी संभव है जब हर युवक को रोजगार मिले, किसानों को उनकी मेहनत का प्रतिफल मिले और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व में मजबूती के साथ पहचाना जा सके। वे एक ऐसे सुराज के सपने को साकार करने के लिए वचनबद्ध हैं जिसमें रक्षा, सुरक्षा, सुख-समृद्धि, शिक्षा-संस्कृति एवम् सभ्यता पुष्पित व पल्लवित हो। कुल मिलाकर एक स्वस्थ भारत की परिकल्पना को अपने हृदय में संजोए हुए वे राम-राज्य की स्थापना की ओर बढ़ते प्रतीत होते हैं। कहीं वे लोकतंत्रा के सच्चे मूल्यों को स्थापित करने के प्रति चेष्टाबद्ध प्रतीत होते हैं तो कहीं वैज्ञानिक, औद्योगिक व तकनीकी प्रगति के मामले में भारत को किसी भी विकसित राष्ट्र के बराबर देखना चाहते हैं। अपनी पारम्परिक विरासत को सम्मान देते हुए वे जिस भारत का सपना देखते हैं उसमें पारस्परिक भेदभाव के स्थान पर सद़भावना, सौहार्द व स्नेह के दर्शन करना चाहते हैं। आइए पढ़ें यह पुस्तक और ऐसे विकास पुरुष के संकल्प को मूर्त रूप में बदलने में सहयोग दें।

Additional information

Author

Pradeep Pandit

ISBN

9789350839058

Pages

288

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Publication

ISBN 10

9350839059

नरेंद्र मोदी एक व्यक्तित्व ही नहीं बल्कि विकास का पर्याय हैं। सबको साथ लेकर एवं सभी को एकता के सूत्रा में पिरोकर समग्र विकास उनका लक्ष्य है। वे गरीबी का अर्थ भी समझते हैं और दर्द भी। गरीबी को मात्रा मन की अवस्था बताने वालों की सोच के प्रति चिंतित दिखाई पड़ते हैं तो दूसरी ओर एक ऐसे सुशासन के लिए कटिबद्ध हैं जिसमें हर थाली के लिए रोटी हो। यह तभी संभव है जब हर युवक को रोजगार मिले, किसानों को उनकी मेहनत का प्रतिफल मिले और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व में मजबूती के साथ पहचाना जा सके। वे एक ऐसे सुराज के सपने को साकार करने के लिए वचनबद्ध हैं जिसमें रक्षा, सुरक्षा, सुख-समृद्धि, शिक्षा-संस्कृति एवम् सभ्यता पुष्पित व पल्लवित हो। कुल मिलाकर एक स्वस्थ भारत की परिकल्पना को अपने हृदय में संजोए हुए वे राम-राज्य की स्थापना की ओर बढ़ते प्रतीत होते हैं। कहीं वे लोकतंत्रा के सच्चे मूल्यों को स्थापित करने के प्रति चेष्टाबद्ध प्रतीत होते हैं तो कहीं वैज्ञानिक, औद्योगिक व तकनीकी प्रगति के मामले में भारत को किसी भी विकसित राष्ट्र के बराबर देखना चाहते हैं। अपनी पारम्परिक विरासत को सम्मान देते हुए वे जिस भारत का सपना देखते हैं उसमें पारस्परिक भेदभाव के स्थान पर सद़भावना, सौहार्द व स्नेह के दर्शन करना चाहते हैं। आइए पढ़ें यह पुस्तक और ऐसे विकास पुरुष के संकल्प को मूर्त रूप में बदलने में सहयोग दें।

ISBN10-9350839059

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