काका की फुलझड़ियां
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काकाजी ने हास्य को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया और आजीवन इसी के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे। अपने जीवनकाल में उन्होंने कितने उदास चेहरों को मुस्काने बांटीं, यह ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है। उनकी रचनाएं समचमुच फुलझड़ियों के समान हैं, जो पढ़ने वालों के मन को हास्य के उजाले से भर जातीं हैं।
इस पुस्तक में संग्रहित काका जी की हास्य-कविताएं, कविसम्मेलनों और काव्य-गोष्ठियों में हजारों-लाखों श्रोताओं को गुदगुदा चुकी हैं। सन् 1965 में पहली बार प्रकाशित इस संकलन की 3 लाख से अधिक प्रतियां अब तक बिक चुकी हैं
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल
Additional information
Author | Kaka Hathrasi |
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ISBN | 8171824137 |
Pages | 192 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171824137 |
काकाजी ने हास्य को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया और आजीवन इसी के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे। अपने जीवनकाल में उन्होंने कितने उदास चेहरों को मुस्काने बांटीं, यह ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है। उनकी रचनाएं समचमुच फुलझड़ियों के समान हैं, जो पढ़ने वालों के मन को हास्य के उजाले से भर जातीं हैं।
इस पुस्तक में संग्रहित काका जी की हास्य-कविताएं, कविसम्मेलनों और काव्य-गोष्ठियों में हजारों-लाखों श्रोताओं को गुदगुदा चुकी हैं। सन् 1965 में पहली बार प्रकाशित इस संकलन की 3 लाख से अधिक प्रतियां अब तक बिक चुकी हैं
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल