Kamayani
कामायनी
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मनु, श्रद्धा और इड़ा इत्यादि अपना ऐतिहासिक अस्तित्व रखते हुए, सांकेतिक अर्थ की भी अभिव्यक्ति करें तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होती। मनु अर्थात मन के दोनों पक्ष हृदय और मस्तिष्क का संबंध क्रमश श्रद्धा और इड़ा से भी सरलता से लगाया जाता है। श्रद्धा हृदय याकूत्या श्रद्धया विन्दते वसु (ऋग्वेद १०-१५१-४) इन्हीं सबके आधार पर कामायनी की कथा-सृष्टि हुई है। हां, कामायनी की कथा श्रृंखला मिलाने के लिए कहीं कहीं थोड़ी बहुत कल्पना को भी काम में लाने का अधिकार झलकता है। जिस समय खड़ी बोली और आधुनिक हिन्दी साहित्य किशोरावस्था में पर्दापण कर रहे थे। काशी के सुंघनी साहु के प्रसिद्ध घराने में श्री जयशंकर प्रसाद का संवत् १९४६ में जन्म हुआ। व्यापार मे कुशल और साहित्यसेवी आपके पिता श्री देवी प्रसाद पर लक्ष्मी की कृपा थी। इस तरह प्रसाद का पालन पोषण लक्ष्मी और सरस्वती के कृपापात्र घराने में हुआ। प्रसाद जी का बचपन अत्यंत सुख के साथ व्यतीत हुआ। आपने अपनी माता के साथ अनेक तीर्थों की यात्राएं की। पिता और माता के दिवंगत होने पर प्रसादजी को अपनी कालेज की पढ़ाई रोक देनी पड़ी और घर पर ही बड़े भाई श्री शम्भुरत्न द्वारा पढ़ाई की व्यवस्था की गई। आपकी सत्रह वर्ष की आयु में ही बड़े भाई का ही स्वर्गवास हो गया। फिर प्रसाद जी ने पारिवारिक ऋण मुक्ति के लिए सम्पत्ति का कुछ भाग बेचा। इस प्रकार आर्थिक सम्पन्नता और कठिनता के किनारों में झूलता प्रसाद का लेखकीय व्यक्तित्व समृद्धि पाता गया। संवत १९८४ में आपने पार्थिव शरीर त्यागकर परलोक गमन किया।
ISBN10-8128806637
Additional information
Author | Jai Shankar Prasad |
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ISBN | 8128806637 |
Pages | 160 |
Format | Paper Back |
Language | Hindi |
Publisher | Ankur Pablication |
ISBN 10 | 8128806637 |
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