कृष्ण गुरु भी सखा भी
कृष्ण गुरु भी सखा भी
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र्जुन के मन को चोट न पहुंचे, इसलिए कृष्ण बात करते हैं मित्र की भाषा में। और धीरे-धीरे उस मित्र की भाषा में ही गुरु का संदेश भी डालते जाते हैं। और जैसे-जैसे अर्जुन राजी होता जाता है, वैसे-वैसे कृष्ण गुरु होते जाते हैं। जैसे ही अर्जुन बंद होता है और डरता है, वैसे ही मित्र हो जाते हैं। जैसे ही अर्जुन राजी होता है, खुलता है, ग्राहक होता है-वे बहुत ऊंचाई पर उठ जाते है उस ऊंचाई पर-जहां कि वे परमात्मा हैं, वहां से बोलन लगते हैं। इसलिए कृष्ण के इन वचनों में कई तलों के वचन हैं। कभी वे मित्र की तरह बोल रहे हैं, कभी वे गुरु की तरह बोल रहे हैं, कभी वे ठीक परमात्मा की तरह बोल रहे हैं।
Additional information
Author | Osho |
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ISBN | 8128804944 |
Pages | 384 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128804944 |