क्‍या खोया क्‍या पाया

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मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है। अत सामाजिक-जैविक विचारों से वह स्‍वत प्रभावित होता है। यह भी सत्‍य है कि प्रकृति की प्रत्‍येक रचना अपूर्ण है। अत मानव एक दूसरे की मैत्री, प्रेम एवं परामर्श के बिना जीवन को विधिपूर्वक नहीं जी सकता। जीवन जीना भी एक कला है और इसकी कलात्‍मकता उपनिषद की भांति है, जिसे बिना गुरु के समझना अत्‍यंत कठिन है। क्‍योंकि सद्गुरु की कृपा से ही स्‍थूल शरीर, सूक्ष्‍म शरीर से जुड़ सकता है।
‘क्‍या खोया क्‍या पाया’ स्‍वानुभवपरक विवेचन मंजूषा है। परम पूज्‍य आचार्य श्री सुदर्शन जी के संपर्क में आने के बाद भक्‍तों ने अपने अंदर जो परिवर्तन पाया, गुरु कृपा से विद्यमान पूर्ण धारणा की जो विस्‍मृति हुई और नवीन विचारों का जो संचार हुआ उन्‍हीं वक्‍तव्‍यों की झलक पाठकों को इस पुस्‍तक में मिलेगी
आर्चाय सुदर्शनजी महाराज
ISBN10-8128819321

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