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क्यों इसे नरक क्यों कह रहे हो?
नरक नहीं कहूंगा? नरक ही तो है। इसलिए तो किसी खूबसूरत औरत को देखते ही लोगों की आंखें चमक उठती हैं।
किस चीज का कारोबार है आपका?
यही कहने के लिए ही तो आपके पास आया हूं। मेरे पीछे बहुत बड़ा और पैसे वाला एक सेठ है। मूलधन के लिए सोचना नहीं पड़ेगा।
वह सब तो ठीक है। पर कारोबार किस चीज का है… यह तो बताइए।
आप इतने अधीर क्यों हो रहे हैं? मैं यही कहने के लिए तो आपके घर आया हूं।
इस तरफ महात्माओं की कई कुटियाएं देखने को मिलती है। उन छोटे आश्रमों मे जटाधारी सारे शरीर पर भभूत लगाए हुए साधु धूनी जलाकर बैठे दिखाई देंगे। असंख्य भक्त महात्माजी को घेरे बैठे रहते हैं। कहीं धर्म सभा होती है, तो कहीं भजन-कीर्तिन। कहीं-कहीं लाउड-स्पीकर लगाकर लोगों को प्रवचन तथा धर्म-कथाएं भी सुनाई जाती हैं।
निशिकान्त बोलाहां, यह सब तो मैंने देखा है। हमारे मुहल्ले में भी एक ऐसा नया आश्रम खुला है पर वह महात्मा हैं कौन?
सब सब आश्रम की ही कृपा है। आश्रम से हम लोगों की बड़ी आमदनी होती है। किसी को कुछ पता नहीं चलता। केवल नाम के वास्ते एक दर्जी की दुकान खोल रखी है। पर उसमें आमदनी कुछ भी नहीं होती-खर्चा भी नहीं निकलता।
Author | Vimal Mitra |
---|---|
ISBN | 8128400657 |
Pages | 272 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128400657 |
क्यों इसे नरक क्यों कह रहे हो?
नरक नहीं कहूंगा? नरक ही तो है। इसलिए तो किसी खूबसूरत औरत को देखते ही लोगों की आंखें चमक उठती हैं।
किस चीज का कारोबार है आपका?
यही कहने के लिए ही तो आपके पास आया हूं। मेरे पीछे बहुत बड़ा और पैसे वाला एक सेठ है। मूलधन के लिए सोचना नहीं पड़ेगा।
वह सब तो ठीक है। पर कारोबार किस चीज का है… यह तो बताइए।
आप इतने अधीर क्यों हो रहे हैं? मैं यही कहने के लिए तो आपके घर आया हूं।
इस तरफ महात्माओं की कई कुटियाएं देखने को मिलती है। उन छोटे आश्रमों मे जटाधारी सारे शरीर पर भभूत लगाए हुए साधु धूनी जलाकर बैठे दिखाई देंगे। असंख्य भक्त महात्माजी को घेरे बैठे रहते हैं। कहीं धर्म सभा होती है, तो कहीं भजन-कीर्तिन। कहीं-कहीं लाउड-स्पीकर लगाकर लोगों को प्रवचन तथा धर्म-कथाएं भी सुनाई जाती हैं।
निशिकान्त बोलाहां, यह सब तो मैंने देखा है। हमारे मुहल्ले में भी एक ऐसा नया आश्रम खुला है पर वह महात्मा हैं कौन?
सब सब आश्रम की ही कृपा है। आश्रम से हम लोगों की बड़ी आमदनी होती है। किसी को कुछ पता नहीं चलता। केवल नाम के वास्ते एक दर्जी की दुकान खोल रखी है। ISBN10-8128400657
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