मानव जीवन बहुआयामी है। पता नहीं चलता किस क्षण उसकी मनोदशा का रंग बदल जाए। कभी तो वह हंसने लगता है, तो कभी रोने, कभी उसका मन आशंकाओं से घिर जाता है तो कभी उसका मन रागात्मक हो जाता है। कहना मुश्किल हो जाता है कि मानव का असली स्वरूप क्या है। वास्तव में यह विभिन्न भाव ही तो जीवन है। इस पुस्तक में आचार्य श्री सुदर्शनजी महाराज ने समय-समय पर जीवन के इन भावों के उतार-चढ़ाव पर अपने संक्षिप्त विचार प्रकट किए हैं। जो विभिन्न अखबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। इन्हीं विविध विचारों के मोतियों को सहेज कर एक सुन्दर माला बनाने का प्रयास इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है। आशा है पाठकों के जीवन में यह माला सुंगध अवश्य फैलाएगी।
आर्चाय सुदर्शनजी महाराज
ISBN10-8128819291