ज्‍योतिष और संतान योग

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संसार का प्रत्‍येक मनुष्‍य, स्‍त्री पुरुष चाहे किसी भी जाति, धर्म, व संप्रदाय का क्‍यों न हो? अपना वंश आगे चलाने की प्रबल इच्‍छा उसके हृदय में प्रतिक्षण विद्यमान रहती है। रजोदर्शन के बाद स्‍त्री–पुरुष के संसर्ग से संतान की उत्‍पत्ति होती है, वंश बेल आगे बढ़ती है, परंतु कई बार प्रकृति विचित्र ढंग से इस वंश वृक्ष की जड़ को ही रोक देती है।
इस पुस्‍तक में इस प्रकार की सभी शंकाओं, समस्‍याओं का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास किया गया। आपकी कुंडली में कितने पुत्रों का योग है? कितनी कन्‍याएं होंगी? प्रथम कन्‍या होगी या पुत्र? आने वाली संतति कपूत या सपूत? हमने प्रेक्टिकल जीवन में ऐसे अनेक प्रयोग किए हैं जब डॉक्‍टरों द्वारा निराश हुए दम्‍पतियों को ज्‍योतिषी उपाय, रत्‍न एवं मंत्र चिकित्‍सा से तेजस्‍वी पुत्र संतति की प्राप्ति हुई, अत यह पुस्‍तक मानवीय सभ्‍यता के लिए अमृत तुल्‍य औषध है।
पं. भोजराज द्विवेदी

Additional information

Author

Dr. Bhojraj Dwivedi

ISBN

8171827845

Pages

176

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8171827845

संसार का प्रत्‍येक मनुष्‍य, स्‍त्री पुरुष चाहे किसी भी जाति, धर्म, व संप्रदाय का क्‍यों न हो? अपना वंश आगे चलाने की प्रबल इच्‍छा उसके हृदय में प्रतिक्षण विद्यमान रहती है। रजोदर्शन के बाद स्‍त्री–पुरुष के संसर्ग से संतान की उत्‍पत्ति होती है, वंश बेल आगे बढ़ती है, परंतु कई बार प्रकृति विचित्र ढंग से इस वंश वृक्ष की जड़ को ही रोक देती है। इस पुस्‍तक में इस प्रकार की सभी शंकाओं, समस्‍याओं का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास किया गया। आपकी कुंडली में कितने पुत्रों का योग है? कितनी कन्‍याएं होंगी? प्रथम कन्‍या होगी या पुत्र? आने वाली संतति कपूत या सपूत? हमने प्रेक्टिकल जीवन में ऐसे अनेक प्रयोग किए हैं जब डॉक्‍टरों द्वारा निराश हुए दम्‍पतियों को ज्‍योतिषी उपाय, रत्‍न एवं मंत्र चिकित्‍सा से तेजस्‍वी पुत्र संतति की प्राप्ति हुई, अत यह पुस्‍तक मानवीय सभ्‍यता के लिए अमृत तुल्‍य औषध है।

पं. भोजराज द्विवेदी

ISBN10-8171827845

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