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आजकल जो तंज़िया शायरी हो रही है वो चुटकुलेबाजी,अफसानानिगारी और फ्रीस्टाइल कविता के अलावा और कुछ नहीं है। न तंज़ का नश्तर है न मज़ाह की चाशनी। बेशऊरी अदब के इस धुंध को चीरकर निकली एक बाशऊर शख्सियत का नाम सुरेश नीरव है। जिन्होंने तज़िया माहौल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनायी है। उनको अपनी ज़ुबान और तरीक़ा—ए—इज़हार पर पूरा उबूर हासिल है। उनको बख़ूबी अंदाज़ा है कि बात कहां से शुरु की जाए और कहां पर खत्म? वो अल्फाज़ और उसके बर्ताव के साथ खेलते हैं। उनके पास अल्फाज़ का एक ऐसा शब्दकोश है जो मानीखेज़ है और पुरअसर भी। वो संजीदा माहौल में बेहद संजीदा नज़र आते हैं और मज़ाहनिगारों के साथ उनका मिज़ाज बिल्कुल बदल जाता है। महफिल को क़हक़हाज़ार बनाना उनके लिए बांये हाथ का खेल है। मजमुईतौर पर उनके व्यंग्य की शायरी घने सायादार दरख़्त की तरह है जो रेगिस्तान को नखलिस्तान बनाता है। संजीदा माहौल में व्यंग्य के तीरो—नश्तर चलाना एक माहिर फ़नकार का ही काम है। जिस तरह एक माहीगीर मछलियों को पकड़ने के लिए जाल फेंकता है उसी तरह सुरेश नीरव तंज़िया मजमून को मज़ाह के जाल में फंसाकर अपने शब्दकोश से निकाले गए अल्फाज़ में सजाकर ख़यालात और एहसासात के गहरे समंदर से निकालते हैं। ठीक उसी तरह—जैसे कोई कड़ी धूप से निकलकर सायेदार पेड़ के नीचे आ बैठे और ज़िदगी के तमाम मसाइल और तक़लीफें भूल जाए। मैं उनकी मज़ीद कामयाबी की दुआ करता हूं।

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Additional information

Author

Pandit Suresh Neerav

ISBN

9789351654414

Pages

120

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Toons

ISBN 10

9351654419