धाुआंकी आस का सफ़र
₹600.00
- About the Book
- Book Details
Dhauaanki Aas Ka Safar
Additional information
Author | Prakash Sohal |
---|---|
ISBN | 9789351655404 |
Pages | 48 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 9351655407 |
अंदरुनी पन्नों मेें उम्मीद का एक लंबा सफर दर्ज है जो सदैव के लिए धुंधली हो गई। ट्टरेप’ का घिनौना सा शब्द सुनते ही या आपकी नज़रों के सामने से निकलते ही, इस कड़वी बात से दिमाग पर बेचैनी छा जाती है। आपको बहुत गुस्सा आता है, अपराधी का गला दबाकर आप खुद ही सज़ा देना चाहते हो, लाचार होते हो, विक्टिम पर दया आती है। ट्टनिज़ाम बदल देना चाहिए’, ट्टऔरत देवी है, माँ है’ और कहीं—कहीं बड़ी बहन भी। सोचते हैं, जहां कहीं किसी का जितना भी बल लगता है, रेहड़ी ढ़ोते मज़दूर से लेकर प्राइम मनिस्टर तक, अपनी पहुंच तक शोर मचाते हैं, ट्टऐसा नहीं होना चाहिए था’ का शोर। जितना बड़ा रुतबा उतना बड़ा शोर..एक और बात है कि मज़दूर के गुस्से में सदाकत होती है और राजनीति में सरासर आडंबर। धर्म के ठेकेदार भी इस सब में बराबर के भाई बंधु हैं। ख्ौर… कुछ समय पहले राजधानी में एक चलती बस में ट्टदामिनी’ का रेप हुआ। हैवानीयत का नंगा नाच, जिस्म मार झेलता रहा होगा, रुह रौंधी गई होगी और हुआ होगा ट्टरेप’, एक उम्मीद का और आखिर तक जख्मों का भरना बादस्तूर जारी रहा होगा।
पंजाब के एक छोटे से गाँव में कुछ ऐसा ही हो गुज़रता है, आज से लगभग चालीस साल पहले। उस समय भी एक ट्टरेप’ हुआ था। एक उम्मीद सदा के लिए धुंधली हो गई थी। एक अंकुरित होती हुई उम्मीद, वहशी हवस की लौ में झुलस गई थी। …मुद्दत से इन सब बातों को मन में लेकर जिंदगी की ऊँच—नीच में से गुजरा हूं मैं। ….साहस ही नहीं होता था ….मुश्किल फैसला क्या ग़लत है और क्या सही का। …लिखना वाजिब है या नहीं। एक कश्मकश बादस्तूर जारी रही। और अब …साहस जुटा कर हाज़िर हुआ हूँ आप पाठकों की कचहरी में, यही सोच लेकर कि बस एक ही जलते हुए दिए की लौ पर्याप्त होती है अंधकार को चीरने के लिए और हर काफिले की बुनियाद पहला कदम ही तो होता है…हम कभी तो जागेंगे।
ISBN10-9351655407
Related products
-
Self Help, Books, Diamond Books
₹195.00Original price was: ₹195.00.₹194.00Current price is: ₹194.00. Add to cart