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हास्‍य-व्‍यंग्‍य में कविता लिखना ‘तलवार की धार पै धावनो’ या नट का रस्‍सी पर चलने के समान है। तनिक चूके कि हुए अंग-भंग, गिरे गड्ढे में – अश्‍लीलता के, भदेस के, फूहड़पन के शिकार। हास्‍य हो जाता है हास्‍यास्‍पद और व्‍यंग्‍य बदरंग। अरुण जैमिनी ने इस दुस्‍साहध्‍य कवि-कर्म का अत्‍यन्‍त सतर्क और संतुलित रहकर निर्वाह किया है। अस्‍सी के दशक से चलकर अब तक इस विधा के जो कवि प्रकाश में आए हैं, उनमें अरुण जैमिनी का नाम श्रेष्‍ठता-क्रम में कनिष्टिका पर आता है। उसकी दैहिक युवावस्‍था में उसकी यशापार्जित कविता कला-परिमार्जित स्थिति को प्राप्‍त कर वैचारिक स्‍तर पर प्रौढ़ावस्‍था में पहुंच गई है। अरुण की कविताओं का रंग-रुप प्रात प्रफुल्लित गुलाब के फूल जैसा है जिसकी कोमल पंखुड़ियों में सुंगन्धित सुहास है और व्‍यंग्‍य के कांटेभी हैं साथ में, पर कांटों के अग्रभाग पर अश्रु-सी ओस बूंद झलकती है, जो चुभन में भी छुवन की लालसा से लसित है। अरुण की इन्‍द्रधनुष-रंगी रचनाएं बहु-आयामी हैं। कहीं हास्‍यकी अन्‍मुक्‍त फुहार है, कहीं व्‍यंग्‍य की धारासार बौछार। कुछ कविताएं स्थिति-जन्‍य हैं, कुछ परिस्‍थति-जन्‍य। व्‍यक्तिगत भी हैं, सामाजिक भी और राजनैतिक भी। कुछ सामयिक है और कुछ सामयिक होतेहुए भी कालातीत। सभी प्रकार के रंग की तरंगे और लहरें हैं इस काव्‍य-संकलन के मानस-सरोवर में।

Additional information

Author

Arun Jaimini

ISBN

8128808486

Pages

112

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8128808486

हास्‍य-व्‍यंग्‍य में कविता लिखना ‘तलवार की धार पै धावनो’ या नट का रस्‍सी पर चलने के समान है। तनिक चूके कि हुए अंग-भंग, गिरे गड्ढे में – अश्‍लीलता के, भदेस के, फूहड़पन के शिकार। हास्‍य हो जाता है हास्‍यास्‍पद और व्‍यंग्‍य बदरंग। अरुण जैमिनी ने इस दुस्‍साहध्‍य कवि-कर्म का अत्‍यन्‍त सतर्क और संतुलित रहकर निर्वाह किया है। अस्‍सी के दशक से चलकर अब तक इस विधा के जो कवि प्रकाश में आए हैं, उनमें अरुण जैमिनी का नाम श्रेष्‍ठता-क्रम में कनिष्टिका पर आता है। उसकी दैहिक युवावस्‍था में उसकी यशापार्जित कविता कला-परिमार्जित स्थिति को प्राप्‍त कर वैचारिक स्‍तर पर प्रौढ़ावस्‍था में पहुंच गई है। अरुण की कविताओं का रंग-रुप प्रात प्रफुल्लित गुलाब के फूल जैसा है जिसकी कोमल पंखुड़ियों में सुंगन्धित सुहास है और व्‍यंग्‍य के कांटेभी हैं साथ में, पर कांटों के अग्रभाग पर अश्रु-सी ओस बूंद झलकती है, जो चुभन में भी छुवन की लालसा से लसित है। अरुण की इन्‍द्रधनुष-रंगी रचनाएं बहु-आयामी हैं। कहीं हास्‍यकी अन्‍मुक्‍त फुहार है, कहीं व्‍यंग्‍य की धारासार बौछार। कुछ कविताएं स्थिति-जन्‍य हैं, कुछ परिस्‍थति-जन्‍य। व्‍यक्तिगत भी हैं, सामाजिक भी और राजनैतिक भी। कुछ सामयिक है और कुछ सामयिक होतेहुए भी कालातीत। सभी प्रकार के रंग की तरंगे और लहरें हैं इस काव्‍य-संकलन के मानस-सरोवर में।

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