मां दुर्गा के रहस्य
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“नामः परम् तत्ववेत्ता सन्त श्री कमल किशोर जी
पृथ्वी पर आगमनः 28 मार्च 1958
परम् तत्व का ज्ञानः वर्ष 1995
एक जीवंत गुरु, जिसके सम्पर्क में आते ही शारीरिक, मानसिक, आत्मिक एवं आध्यात्मिक बाधएं अपने आप समाप्त होने लगती हैं।
सन्त श्री कमल किशोर जी उनसे भी प्रेम करते हैं, जो उनसे प्रेम करते हैं और उनसे भी प्रेम करते हैं जो उनसे घृणा करते हैं, वे उनको भी प्रेम करते हैं जो उनके पास हैं, वे उनसे भी प्रेम करते हैं जो उनसे दूर हैं- क्योंकि उनके पास देने को है तो सिफ॔ प्रेम!
प्रेम ही उनका धर्म है, उनका स्वभाव है, उनकी पहचान है। वे कहते हैं कि इन्सान वही तो दे सकता है जो उसके पास है। उनके पास केवल प्रेम है।
पेड़-पौधे, जीव-जन्तुओं सभी से वे उनकी भाषा में बात करते हैं-आयुर्वेद के सम्पूर्ण ज्ञाता हैं, शान्ति के प्रदाता हैं। चाहे गीता हो या कुरान, रामायण हो या बाइबल, श्री गुरु ग्रन्थ साहब हों या उपनिषद – कबीर हों या नानक, बुद्ध या महावीर, मीरा हों या एकनाथ, ज्ञानेश्वर हों या रहीम, मंसूर हों या च्वांगत्सू, दरियादास हों या महाराज पलटू, सन्त रविदास हों या सरमद, नामदेव हों या तुकाराम, दादू दयाल हों या शेख़-फरीद या फिर हों साईं बुल्लेशाह-सभी के साथ गहरा संबंध् है उनका!
दूरभाषः 09412016633”
Additional information
Author | Sant Shree Kamal Kishor |
---|---|
ISBN | 9789351650744 |
Pages | 256 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Publication |
ISBN 10 | 935165074X |
नामः परम् तत्ववेत्ता सन्त श्री कमल किशोर जी
पृथ्वी पर आगमनः 28 मार्च 1958
परम् तत्व का ज्ञानः वर्ष 1995
एक जीवंत गुरु, जिसके सम्पर्क में आते ही शारीरिक, मानसिक, आत्मिक एवं आध्यात्मिक बाधएं अपने आप समाप्त होने लगती हैं।
सन्त श्री कमल किशोर जी उनसे भी प्रेम करते हैं, जो उनसे प्रेम करते हैं और उनसे भी प्रेम करते हैं जो उनसे घृणा करते हैं, वे उनको भी प्रेम करते हैं जो उनके पास हैं, वे उनसे भी प्रेम करते हैं जो उनसे दूर हैं- क्योंकि उनके पास देने को है तो सिफ॔ प्रेम!
प्रेम ही उनका धर्म है, उनका स्वभाव है, उनकी पहचान है। वे कहते हैं कि इन्सान वही तो दे सकता है जो उसके पास है। उनके पास केवल प्रेम है।
पेड़-पौधे, जीव-जन्तुओं सभी से वे उनकी भाषा में बात करते हैं-आयुर्वेद के सम्पूर्ण ज्ञाता हैं, शान्ति के प्रदाता हैं। चाहे गीता हो या कुरान, रामायण हो या बाइबल, श्री गुरु ग्रन्थ साहब हों या उपनिषद – कबीर हों या नानक, बुद्ध या महावीर, मीरा हों या एकनाथ, ज्ञानेश्वर हों या रहीम, मंसूर हों या च्वांगत्सू, दरियादास हों या महाराज पलटू, सन्त रविदास हों या सरमद, नामदेव हों या तुकाराम, दादू दयाल हों या शेख़-फरीद या फिर हों साईं बुल्लेशाह-सभी के साथ गहरा संबंध् है । ISBN10-935165074X