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मेरी कहानियाँ

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गांव के ही करीम भाई के बड़े नवाब शेख साहब अरब देशों में मसालों का व्यापार करते थे। उम्र और तालीम दोनों में वह मुझसे कई गुना आगे थे। वह स्वदेश आने पर मेरे लिए कुछ न कुछ जरूर लाते थे। मीठी ईद के अवसर पर वह मुझे बच्चों के संग आमंत्रित करते थे। कुछ पढ़ा-लिखा होने के कारण शेख साहब मुझे भी अपने साथ विदेश ले जाकर धन कमाने के लिए कहा करते थे। शेख साहब उस जमाने में शायरी के भी खलीफा हुआ करते थे। अपनी बात को वह हमेशा शायराना अंदाज में ही पेश किया करते थे।
दूर देश में चल ऐ बन्दे, अल्लाह रहा पुकार।
कर ले कोई चाकरी, हो जाएगी नैया पार ।।
उस समय मुझमें परिवार और अपनी मिट्टी छोड़ने की बिलकुल भी हिम्मत न थी लिहाजा मैं उन्हें जवाब भी उन्हीं की जुबान में देता था।
खाक करे अब नौकरी, जाएं छोड़ विदेश।
चटनी से ही पेट भरेंगे, आधी मिले या एक।।

…मेरी कहानियाँ का एक अंश

Additional information

Author

Vaibhav Shakya

ISBN

9789350839850

Pages

24

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Publication

ISBN 10

9350839857

गांव के ही करीम भाई के बड़े नवाब शेख साहब अरब देशों में मसालों का व्यापार करते थे। उम्र और तालीम दोनों में वह मुझसे कई गुना आगे थे। वह स्वदेश आने पर मेरे लिए कुछ न कुछ जरूर लाते थे। मीठी ईद के अवसर पर वह मुझे बच्चों के संग आमंत्रित करते थे। कुछ पढ़ा-लिखा होने के कारण शेख साहब मुझे भी अपने साथ विदेश ले जाकर धन कमाने के लिए कहा करते थे। शेख साहब उस जमाने में शायरी के भी खलीफा हुआ करते थे। अपनी बात को वह हमेशा शायराना अंदाज में ही पेश किया करते थे।
दूर देश में चल ऐ बन्दे, अल्लाह रहा पुकार।
कर ले कोई चाकरी, हो जाएगी नैया पार ।।
उस समय मुझमें परिवार और अपनी मिट्टी छोड़ने की बिलकुल भी हिम्मत न थी लिहाजा मैं उन्हें जवाब भी उन्हीं की जुबान में देता था।
खाक करे अब नौकरी, जाएं छोड़ विदेश।
चटनी से ही पेट भरेंगे, आधी मिले या एक।।

…मेरी कहानियाँ का एक अंश

ISBN10-9350839857

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