मेरे प्रिय आत्‍मन

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इस स्‍मृति संग्रह का एक सुंदर पहलू यह है कि बागमार जी लेखक नहीं हैं। अगर वे लेखक होते तो अपने अनिर्वचनीय अनुभवों को सजाते, संवारते, शब्‍दों के अलंकृत करते और इस सब में इनका कुंवारापन खो जाता। यहां पर उन्‍होंने अपने मन के कैमरे में अनुभव कैद कर उनके शब्‍द चित्र बनाये हैं। कितना आसान था इसमें नमक मिर्च मिलाकर, थोड़ा कल्‍पना का तड़का देकर रसोई को जायकेदार बनाना। लेकिन उन्‍होंने ऐसा नहीं किया। घटनाएं जैसी घटीं उन्‍हें हू-ब-हू सुनाकर उन्‍होंने अपनी ईमानदारी का सबूत दिया है। इसीलिए हम उनकी नजरों से ओशो को सुस्‍पष्‍ट देख पाते हैं।

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मेरे प्रिय आत्‍मन

Additional information

Author

P C Bagmar

ISBN

9790000000000

Pages

240

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8128821881