Yaghen Papaih Bahubhirvimuktah
यज्ञेन पापै: बहुभिर्वि मुक्त:
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भारतीय संस्कृति में यज्ञ का अर्थ व्यापक है। यज्ञ मात्र अग्निहोत्र को ही नहीं कहते हैं, वरन् परमार्थ परायण कार्य ही यज्ञ है। यज्ञ स्वयं के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए किया जाता है।
यज्ञ का प्रचलन वैदिक युग से है। वेदों में यज्ञ की विस्तार से चर्चा की गई है। प्राचीन ऋषि नित्य यज्ञ किया करते थे। वे देवताओं को यज्ञ का भाग देकर उन्हें पुष्ट करते थे, जिससे देवता प्रसन्न होकर धन, वैभव, आनन्द की वर्षा करते थे। वेदों में यज्ञ के बारे में स्पष्ट कहा है कि यज्ञ से विश्व का कल्याण होता है। यज्ञ किसी एक के लिए नहीं बल्कि विश्व के सभी प्राणियों के कल्याणार्थ किया जाता है।
Additional information
Author | Dr. Vineet Vidyarthi |
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ISBN | 9789351658832 |
Pages | 32+32+32 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 935165883X |