लिंगास्‍तकाम

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श्रीमदभागवत, ज्ञान कथा और लोकमंगलकारी रामचरित कथा के प्रवचन में समान अधिकार रखने वाले युवा श्री किरीट ‘भाई जी’ का जन्‍म 21 जुलाई सन्र 1962 को पोरबंदर (गुजरात) में हुआ। उन्‍होंेने आत्‍मज्ञान और ज्ञान के लोक विकास के लिए सात वर्ष की आयु में वल्‍लभकुल गोस्‍वामीश्री गोविन्‍द राय जी (गुरुजी) महाराज से दीक्षा प्राप्‍त की। दीक्षा प्राप्‍त करने के तुरंतबाद इंगले।ड निवासी हुए और वहां जीविका के लिए निमित्‍त चार्टर्ड एकाउंटेंसी में डिग्री प्राप्‍त की।
‘भाई जी’ का लंदन आना विश्‍व के धर्मशील व्‍यक्तियों के लिए उस समय वरदान सिद्ध हुआ, जब 1978 में हनुमान जयंती के अवसर पर आपने कथा प्रवचन प्रारंभ किया। लंदन में इस कथा प्रवचन से भक्‍तों को एक नया प्रकाश मिला और उसके बाद विभिन्‍न रूपों में मारीशस, दक्षिण अफ्रीका (डर्बन), पाकिस्‍तान, कीनिया, इटली, हालैंड आदि स्‍थानों पर मधुर ओर अगाध्‍ ज्ञानयुक्‍त कथा प्रवचन से वर्तमान जीवन की विसंगतियों से युक्‍त मनुष्‍य को धर्मशीलता का मार्ग दिखाया।
पूज्‍य किरीट भाई भक्ति भाव का एक ऐसा सागर है, जिसका कोई किनारा नहीं, उसकी लहर ही रसामृत का पान कराने के लिए गतिमान होती है और उसकी लहर ही प्राप्ति के किनारे का आभास कराती है।

Additional information

Author

Kirit Bhai

ISBN

8128808583

Pages

152

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8128808583

श्रीमदभागवत, ज्ञान कथा और लोकमंगलकारी रामचरित कथा के प्रवचन में समान अधिकार रखने वाले युवा श्री किरीट ‘भाई जी’ का जन्‍म 21 जुलाई सन्र 1962 को पोरबंदर (गुजरात) में हुआ। उन्‍होंेने आत्‍मज्ञान और ज्ञान के लोक विकास के लिए सात वर्ष की आयु में वल्‍लभकुल गोस्‍वामीश्री गोविन्‍द राय जी (गुरुजी) महाराज से दीक्षा प्राप्‍त की। दीक्षा प्राप्‍त करने के तुरंतबाद इंगले।ड निवासी हुए और वहां जीविका के लिए निमित्‍त चार्टर्ड एकाउंटेंसी में डिग्री प्राप्‍त की।
‘भाई जी’ का लंदन आना विश्‍व के धर्मशील व्‍यक्तियों के लिए उस समय वरदान सिद्ध हुआ, जब 1978 में हनुमान जयंती के अवसर पर आपने कथा प्रवचन प्रारंभ किया। लंदन में इस कथा प्रवचन से भक्‍तों को एक नया प्रकाश मिला और उसके बाद विभिन्‍न रूपों में मारीशस, दक्षिण अफ्रीका (डर्बन), पाकिस्‍तान, कीनिया, इटली, हालैंड आदि स्‍थानों पर मधुर ओर अगाध्‍ ज्ञानयुक्‍त कथा प्रवचन से वर्तमान जीवन की विसंगतियों से युक्‍त मनुष्‍य को धर्मशीलता का मार्ग दिखाया।
पूज्‍य किरीट भाई भक्ति भाव का एक ऐसा सागर है, जिसका कोई किनारा नहीं, उसकी लहर ही रसामृत का पान कराने के लिए गतिमान होती है और उसकी लहर ही प्राप्ति के किनारे का आभास कराती है।
ISBN10-8128808583

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