लिंग पुराण
लिंग पुराण
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‘लिंग पुराण’ में भगवान शिव से संबंधित विभिन्न पौराणिक आख्यानों, उपाख्यानों तथा घटनाओं का समावेश कर शैव सिद्धांतों का सहज,सरल और तर्कसंगत प्रतिपादन किया गया है। इसलिए इस पुराण को ‘शैव प्रधान पुराण’ कहा गया है।
यद्यपि लिंग को अर्थजननेन्दि︎य से कहा गया है, तथापि इस पुराण में ‘लिंग’ का अर्थ जननेन्दि︎य से न होकर ओंकार से संबंधित है। समस्त पुराणों में सृष्टि का आरंभ ‘परब्रह्मा’ से कहा गया है, जिसका न तो कोई आकार है और न कोई स्वरूप। वह निर्णुण निराकार है। उसी निर्णुण परब्रह्म के स्वरूप को व्यक्त करने का प्रतीक ‘लिंग’ है।
Additional information
Author | Vinay |
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ISBN | 8128806821 |
Pages | 80 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128806823 |