Call us on: +91-9716244500

Free shipping On all orders above Rs 600/-

We are available 10am-5 pm, Need help? contact us

शिवसूत्र

100.00

In stock

Other Buying Options

शिव अर्थात अकम्पित चेतना। शिव अर्थात सम्पूर्ण संतृप्तिदायक शून्यता। शिव महायोगी हैं। जीवन के अनगिनत भोगों में होते हुए भी वे अपनी महा-समाधि में स्थित हैं। शिव सूत्र में उन्होंने कहा है कि-‘‘अस्तित्व का आनंद भोगना ही समाधि है’’। कैसे इस सहज समाधि को प्राप्त किया जाए एवं उस महायोग की स्थिति में परिस्थापित हुआ जाए? किस प्रकार इस अस्तित्व का अनवरत आनंद भोगा जाए कि वह हमें स्वतः ही महा समाधि की ओर ले जाए। कैसे शिव तुल्य हुआ जाए एवं शिव समान अकम्पित चेतना को प्राप्त हुआ जाए? यह पुस्तक हमें इन सभी आयामों के बारे में भगवान शिव के द्वारा दिए गए मार्गदर्शन से अत्यन्त सहज रूप से अवगत कराती है। यह मार्गदर्शन इस सम्पूर्ण जीवन, इसकी विडंबनाओं, इसकी मूर्छाओं का परम हल है। भगवान शिव के जीवन व उनकी शिक्षाओं को समझने का यह सुगम उपाय है। इस पुस्तक के दूसरे भाग में शिव गंगा ध्यान विधि उद्घृत की गयी है ज¨ कि विज्ञान भैरव तन्त्र में वर्णित है। यह ध्यान सभी साधक¨ के लिए अत्यन्त सहायक है। इस ध्यान को स्वयं करने के लिए इसकी एक निर्देशित ध्यान की सी.डी. भी पुस्तक के साथ सम्मलित है।

ISBN10-9350832992

भगवान शिव कहते है ”उद्यम ही भैरव है।“ उद्यम से यहाँ मतलब है ऐसा कर्म जो उत्थान के लिये किया जाये। कर्म इन तीन तलों पर होता है – आप क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं और क्या काम करते हैं? ये तीनों तल आपके कर्म निर्मित करते है। अगर इन तीनों तलों पर आप अपने उत्थान पर सौ प्रतिशत एकनिष्ठ हैं, तब वह उद्यम है। तब आप उस क्रिया को उद्यम कह सकते है। और उद्यम का कभी कर्म नहीं बनता, यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात समझने की है। आप सामान्यतः कर्म करते रहते हो और कर्म बन्धन बनते रहते हैं, चाहे वो अच्छे कर्म हांे, चाहे वो बुरे कर्म हों। पर अगर वो उद्यम है, तो वह चेतना के तल पर है। वह संसार के तल पर, शरीर के तल पर नहीं है। अस्तित्व में उसका लेखा जोखा चेतना के तल पर होता है। इसलिये उसका कोई कर्म नहीं बनता। तो उद्यम को जीयो, कर्मों को मत जीयो। तभी मंैं बार-बार बोलता हूँ कि अपने उत्थान पर केन्द्रित रहो। जो भी आप कर्म करते हैं, सोचते हैं या महसूस करते हैं, वह एकनिष्ठता से आपके उत्थान के लिये होना चाहिये। इसलिये यहाँ पर उद्यम शब्द का इस्तेमाल किया गया है। और शिव के सिवाय इस तरह की बात कोई नहीं बोलेगा क्योंकि उसके लिये बहुत ज्òयादा गहराई और ऊँचाई की आवश्यकता है। इतने थोडòे में उन्होंने सब कुछ बोल दिया है।

…इस पुस्तक से

Additional information

Author

Devom

ISBN

9789350832998

Pages

144

Format

Hard Bound

Language

Hindi

Publisher

Jr Diamond

ISBN 10

9350832992

SKU 9789350832998 Categories ,

Social Media Posts

This is a gallery to showcase images from your recent social posts