1166 ई में पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ और 1192 ई में अन्त। वे वीर, साहसी व स्वाभिमानी थे। राजपाट का पर्याप्त अनुभव उन्हें मिला नहीं। बालिग होने से पहले ही उन्हें युद्ध-क्षेत्र में उतरना पडा। अन्त तक मैदानेत्-जंग में उलझ्े रहनेका सिलसिला जारी रहा। तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुए। 26 वर्ष की आयु में युदध् भूमि में लडते-लडते वीरगति को प्राप्त हुए। किसी ने खूब कहा है-
“चौहान रण में शहीद हुए पाई मुक्ति महान
श्यामली ने उत्सर्ग किए चरणों में अपने प्राण्।“
भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व ‘सम्राट पृथ्वीराज चौहान’, जिनकी कीर्ति गाथा इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में लिखीजानी चाहिए थी, परन्तु वह उपेक्षित-सा रहा। चर्चित लेखक रघुवीरसिंह राजपूत जी ने अपनी इस पुस्तक में उन्हीं के जीवन-वृतांत को पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
सम्राट पृथ्वी राज चौहान
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1166 ई में पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ और 1192 ई में अन्त। वे वीर, साहसी व स्वाभिमानी थे। राजपाट का पर्याप्त अनुभव उन्हें मिला नहीं। बालिग होने से पहले ही उन्हें युद्ध-क्षेत्र में उतरना पडा। अन्त तक मैदानेत्-जंग में उलझ्े रहनेका सिलसिला जारी रहा। तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुए। 26 वर्ष की आयु में युदध् भूमि में लडते-लडते वीरगति को प्राप्त हुए। किसी ने खूब कहा है-
“चौहान रण में शहीद हुए पाई मुक्ति महान
श्यामली ने उत्सर्ग किए चरणों में अपने प्राण्।“
भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व ‘सम्राट पृथ्वीराज चौहान’, जिनकी कीर्ति गाथा इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में लिखीजानी चाहिए थी, परन्तु वह उपेक्षित-सा रहा।
चर्चित लेखक रघुवीरसिंह राजपूत जी ने अपनी इस पुस्तक में उन्हीं के जीवन-वृतांत को पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
ISBN10-8128812386
Additional information
Author | Raghuvir Singh Rajput |
---|---|
ISBN | 9788128812385 |
Pages | 104 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128812386 |
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