सुमिरन मेरा हरि करें (प्रश्नोत्तर)
सुमिरन मेरा हरि करें (प्रश्नोत्तर)
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और हम सब उधार जी रहे हैं। कोई कृष्ण को जी रहा है, कोई राम को जी रहा है, कोई बुद्ध को जी रहा है, कोई किसी और को जी रहा है-कोई स्वयं में नहीं जी रहा है। अप्प दीपो भव। अपने दीये खुद बनो। सब और दीये बुझा दो- बेहतर है अपना अंधेरा दूसरे की रोशनी की बजाय-ताकि हम अपनी रोशनी खोज सके। मगर श्रम करना होगा, साधना करनी होगी। तो स्वयं को जरूर पा सकोगे। स्वयं को खोना होगा तब पा सकोगे। ज्ञान को खोने से शुरू करो, वह अहंकार को खोने की तरफ पहला कदम है। और पहला कदम आधी मंजिल है।
Additional information
Author | Osho |
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ISBN | 8171822681 |
Pages | 160 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171822681 |