“भक्तिरस के यशस्वी कवि सूरदास का साहित्य विविधताओं से भरा हुआ है। उनके काव्य में भक्ति भावना की अधिकता है और इनकी भक्ति सखा भाव की है। भगवान कृष्ण के वे अनन्य भक्त थे। उनके भक्त हृदय के विविध भाव उनके काव्य में प्रयोग हुए हैं। सूरदास ने अपने इष्ट देव श्रीकृष्ण की सूक्ष्म से सूक्ष्म बाल-लीलाओं तथा प्रेम-क्रीड़ाओं का बड़ी बारीकी से अपने काव्य में अंकित किया है, जिन्हें पढ़ने के बाद स्वाभाविक रूप से आम जन के हृदय में भक्ति भावना उत्पन्न हो जाया करती है। ब्रज भाषा में रचे गये काव्य सहज, मधुर और प्रभावोत्पादक हैं। इनके काव्य के पदों को गाया जा सकता है और इनमें भावुकता एवं संगीत भी है। इनके पदों में संस्कृत और अरबी-फारसी के शब्द भी हैं।
सूरदास को बाल्यावस्था का वर्णन करने में महारत हासिल था। उनकी लेखनी वात्सल्य वर्णन खुले शब्दों में करती थी। यह कहना गलत न होगा, सूरदास के काव्य में भगवान कृष्ण की बाल्यावस्था का वर्णन बहुत सफाई से हुआ है और बाल सुलभ लीलाओं का स्वाभाविक वर्णन है। उनके काव्य में शृंगार रस के संयोग तथा वियोग दोनों ही रूप मिलते हैं। राधा-कृष्ण के मिलन, वियोग आदि का सूरदास ने बड़ी कुशलता से वर्णन किया है। पाठकों के लिए यह पुस्तक संभाल कर रखने वाली है।”
सूरदास और उनका साहित्य
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भक्तिरस के यशस्वी कवि सूरदास का साहित्य विविधताओं से भरा हुआ है। उनके काव्य में भक्ति भावना की अधिकता है और इनकी भक्ति सखा भाव की है। भगवान कृष्ण के वे अनन्य भक्त थे। उनके भक्त हृदय के विविध भाव उनके काव्य में प्रयोग हुए हैं। सूरदास ने अपने इष्ट देव श्रीकृष्ण की सूक्ष्म से सूक्ष्म बाल-लीलाओं तथा प्रेम-क्रीड़ाओं का बड़ी बारीकी से अपने काव्य में अंकित किया है, जिन्हें पढ़ने के बाद स्वाभाविक रूप से आम जन के हृदय में भक्ति भावना उत्पन्न हो जाया करती है। ब्रज भाषा में रचे गये काव्य सहज, मधुर और प्रभावोत्पादक हैं। इनके काव्य के पदों को गाया जा सकता है और इनमें भावुकता एवं संगीत भी है। इनके पदों में संस्कृत और अरबी-फारसी के शब्द भी हैं।
सूरदास को बाल्यावस्था का वर्णन करने में महारत हासिल था। उनकी लेखनी वात्सल्य वर्णन खुले शब्दों में करती थी। यह कहना गलत न होगा, सूरदास के काव्य में भगवान कृष्ण की बाल्यावस्था का वर्णन बहुत सफाई से हुआ है और बाल सुलभ लीलाओं का स्वाभाविक वर्णन है। उनके काव्य में शृंगार रस के संयोग तथा वियोग दोनों ही रूप मिलते हैं। राधा-कृष्ण के मिलन, वियोग आदि का सूरदास ने बड़ी कुशलता से वर्णन किया है। पाठकों के लिए यह पुस्तक संभाल कर रखने वाली है।
Additional information
Author | Swami Anand Kulshresth |
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ISBN | 9789351653998 |
Pages | 168 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 9351653994 |