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क्या आपने इस बिंदु पर सोचा है कि व्यक्ति का क्रोध उस पक्ष पर उतरता है, जो दुर्बल या कमजोर हो, अधिक शक्तिशाली पक्ष पर नहीं। कारण क्या है? कारण यही है कि शक्ति दुर्बल पक्ष को हिंसा का पात्र बनाती है। बाघ मृग को दबोचता है, मृग बाघ को नहीं।
देखा जाए तो हजारों वर्षों के अपने इतिहास में मानव-समाज भी मृगों और बाघों के बीच विभाजित होता चला गया है। यह विभाजन धन और संपन्नता के असमान बंटवारे की नींव पर भी हुआ, पदों और महत्ता की असमानता के कारण भी, शारीरिक, शक्ति के असंतुलन पर भी, समाज के वर्गीकरण के कारण भी। सारांश यह है कि धीरे-धीरे समाज का स्वरूप ही कुछ ऐसा बन गया कि हिंसा के लिए संभावनाएं बनती चली गई।
हिंसा के जितने रूप समाज में इससमय विद्यमान है, लगभग उन सभी की समीक्षा इस पुस्तक में की गई है और बताया गया है कि मानव-समाज में दिखाई देने और दिखाई न देने वाली कितनी हिंसक प्रवृत्तियां हैं, जो मानव-प्राणी और मानव-समाज को प्रदूषित करती जा रही हैं। यह पुस्तक केवल हिंसा को ही चिंहिनत नहीं करती, इससे ऊपर उठने की प्रेरणा भी देती है।
Author | Nishtar Khanquahi |
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ISBN | 8128802038 |
Pages | 264 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128802038 |
क्या आपने इस बिंदु पर सोचा है कि व्यक्ति का क्रोध उस पक्ष पर उतरता है, जो दुर्बल या कमजोर हो, अधिक शक्तिशाली पक्ष पर नहीं। कारण क्या है? कारण यही है कि शक्ति दुर्बल पक्ष को हिंसा का पात्र बनाती है। बाघ मृग को दबोचता है, मृग बाघ को नहीं।
देखा जाए तो हजारों वर्षों के अपने इतिहास में मानव-समाज भी मृगों और बाघों के बीच विभाजित होता चला गया है। यह विभाजन धन और संपन्नता के असमान बंटवारे की नींव पर भी हुआ, पदों और महत्ता की असमानता के कारण भी, शारीरिक, शक्ति के असंतुलन पर भी, समाज के वर्गीकरण के कारण भी। सारांश यह है कि धीरे-धीरे समाज का स्वरूप ही कुछ ऐसा बन गया कि हिंसा के लिए संभावनाएं बनती चली गई।
हिंसा के जितने रूप समाज में इससमय विद्यमान है, लगभग उन सभी की समीक्षा इस पुस्तक में की गई है और बताया गया है कि मानव-समाज में दिखाई देने और दिखाई न देने वाली कितनी हिंसक प्रवृत्तियां हैं, जो मानव-प्राणी और मानव-समाज को प्रदूषित करती जा रही हैं। यह पुस्तक केवल हिंसा को ही चिंहिनत नहीं करती, इससे ऊपर उठने की प्रेरणा भी देती है।
ISBN10-8128802038