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Honi Hoye So Hoye (Kabir Vani)
Author | Osho |
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ISBN | 8171828299 |
Pages | 112 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171828299 |
कबीर-वाणी तथा फरीद-वाणी पर ओशो की पुस्तक ‘न कानों सुना न आंखों देखा’ के बीस अमृत प्रवचनों में से पांच (11 से 15) प्रवचनों का संकलन इस पुस्तक में प्रस्तुत हैं।
‘होनी हो सो होय’ कबीर के अनूठे पदों पर ओशो की यह अमृत प्रवचनमाला अंहकार-शून्यता का सुमधुर संदेश है।
मनुष्य अपने अहंकार के नशे में सोचता है कि वह कर्त्ता है, जबकि अस्तित्व में सब कुछ अपने आप हो रहा है। बूंद को यह भ्रांति हो गई है कि वह कुछ कर रही है, जबकि वास्तविकता यह है कि बूंद का अपना कोई अलग अस्तित्व ही नहीं है, ये बूंदें अभिव्यक्तियां हैं सागर की।
कबीर ने कहा है ज्यों-की-त्यों धरि दीन्हीं चदरिया।
अनुभूति के ऐसे अनूठे लोक में मिटने के लिए और पूर्ण की अनुभूति के लिए-लहर की भांति खोने के लिए, सागरकी भांति समग्र होने के लिए कबीर के इन मीठे पदों के माध्यम से ओशो हमें निमंत्रण दे रहें हैं। और फिर—- होनी होय सो होय ISBN10-8171828299