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अष्टावक्र महागीता भाग 3: जो है सो है ओशो की एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पुस्तक है, जो अष्टावक्र और राजा जनक के संवाद पर आधारित है। यह पुस्तक आत्मा की सच्चाई, ध्यान, और स्वीकृति के महत्व पर जोर देती है, और पाठकों को आत्मज्ञान की दिशा में प्रेरित करती है
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
यह पुस्तक ओशो द्वारा लिखी गई है, जिसमें उन्होंने अष्टावक्र गीता के गहन श्लोकों की व्याख्या की है। इसमें जीवन की सच्चाई और आत्मज्ञान को सरल और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया है
जो है सो है का अर्थ है जीवन को जैसा है, वैसे ही स्वीकार करना। ओशो बताते हैं कि जब हम जीवन की सच्चाइयों को स्वीकार करते हैं, तभी हम ध्यान और आत्मज्ञान की ओर बढ़ सकते हैं। यह स्वीकृति शांति और मुक्ति की कुंजी है।
अष्टावक्र और राजा जनक का संवाद जीवन के गहरे आध्यात्मिक सत्य को उजागर करता है। यह संवाद आत्मा की वास्तविकता, ध्यान, और माया के बंधनों से मुक्ति पाने का मार्ग बताता है
ओशो की व्याख्या सरल, स्पष्ट, और गहन है। उन्होंने ध्यान और आत्मनिरीक्षण के माध्यम से जीवन की सच्चाइयों को समझाया है। उनका दृष्टिकोण हर व्यक्ति के लिए सुलभ है और जीवन को गहराई से समझने के लिए प्रेरित करता है।
अष्टावक्र गीता का अध्ययन आत्मा की सच्चाई और माया के बंधनों से मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। यह पुस्तक आत्मज्ञान की दिशा में प्रेरित करती है और जीवन की गहन सच्चाइयों को समझने का मार्ग दिखाती है।
Weight | 428 g |
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Dimensions | 19.8 × 12.97 × 0.2 cm |
Author | Osho |
ISBN | 8184190026 |
Pages | 328 |
Format | Hard Bound |
Language | Hindi |
Publisher | Fusion Books |
ISBN 10 | 8184190026 |
यह जनक और अष्टावक्र के बीच जो चर्चा है, यह अद्भुत संवाद है। अष्टावक्र ने कुछ बहुमूल्य बातें कहीं। जनक उन्हीं बातों की प्रतिध्वनि करते हैं। जनक कहते हैं कि ठीक कहा, बिल्कुल ठीक कहा; ऐसा ही मैं अनुभव कर रहा हूं; मैं अपने अनुभव की अभिव्यक्ति देता हूं। इसमें कुछ प्रश्नोत्तर नहीं हैं। एक ही बात को गुरु और शिष्य दोनों कह रहे हैं। एक ही बात को अपने-अपने ढंग से दोनों ने गुनगुनाया है। दोनों के बीच एक गहरा संवाद है। यह संवाद है, यह विवाद नहीं है। कृष्ण और अर्जुन के बीच विवाद है। अर्जुन को संदेह है। वह नयी-नयी शंकाएं उठाता है। चाहे कृष्ण को लगता भी न हो कि तुम गलत कह रहे हो, लेकिन अपर्याप्त रूप से कहे चला जाता है कि अभी मेरा संशय नहीं मिटा। वह एक ही बात मेरा संशय नहीं मिटा, अभी मेरी शंका जिंदा है; तुमने जो कहा वह जंचा नहीं। ISBN10-8184190026
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