‘सूफी’ इश्क की खुशबू है या फिर यूं कहें सूफी का इश्क ही वह खुशबू है जिसे न देखा जा सकता है न दिखाया जा सकता है। न कहा जा सकता हैन पढ़ा जा सकता है। गुलाब के पास कितना कुछ है जो दिखता है। जो उसके सौंदर्य को, उसके होने को प्रमाणित करता है। लेकिन खुशबू के पास दिखाने को कुछ नहीं है पर फिर भी वह मालिक है। फूल पर, बगीचे पर उसका राज है। वह फूल का वास्तविक सौंदर्य है। कुछ न होना ही खुशबू को बहुत कुछ बना देता है। सूफी भी ऐसा ही मालिक है जो कुछ न होते हुए भी बहुत कुछ है। वह कहने को फकीर है लेकिन मालिक है, क्योंकि उसके ताल्लुकात, उसका गठबंधन असली मालिक से है।
इश्क की खूशबू है शूफी
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‘सूफी’ इश्क की खुशबू है या फिर यूं कहें सूफी का इश्क ही वह खुशबू है जिसे न देखा जा सकता है न दिखाया जा सकता है। न कहा जा सकता हैन पढ़ा जा सकता है। गुलाब के पास कितना कुछ है जो दिखता है। जो उसके सौंदर्य को, उसके होने को प्रमाणित करता है। लेकिन खुशबू के पास दिखाने को कुछ नहीं है पर फिर भी वह मालिक है। फूल पर, बगीचे पर उसका राज है। वह फूल का वास्तविक सौंदर्य है। कुछ न होना ही खुशबू को बहुत कुछ बना देता है। सूफी भी ऐसा ही मालिक है जो कुछ न होते हुए भी बहुत कुछ है। वह कहने को फकीर है लेकिन मालिक है, क्योंकि उसके ताल्लुकात, उसका गठबंधन असली मालिक से है।
Additional information
Author | Shashi Kant Sadaiv |
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ISBN | 8128817728 |
Pages | 176 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128817728 |