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सद्गुरु की शरण में जाकर एक नया जन्म होता है। जहां पुराना गलकर पिघल जाता है और सिर्फ रह जाता है- एक नया मनुष्य। नया मनुष्य बनना अर्थात् बंधनों से मुक्त होना, बचचे सा निर्दोष बनना। कोरी स्लेट बनना। यह प्रयास से नहीं समझ या बोध से होता है और समझ् के अंदर विस्फोट से होता है। पर्त दर पर्त अपने को उघाड़ता जाना है। अचेतन को चेतन बनाना है। यह तभी संभव होता है जब नजर उस नजर से मिल जाए और कहने को सिर्फ रह जाए- उस नजर ने क्या से क्या बना दिया।’ इस पुस्तक में आत्मा को स्वयं के अहंकारबोध से मुक्तकर अस्तित्व के द्वार पर आखिरी छलांग लगाना चाहते हैं। सद्गुरु की अनुकंपा और करुणा ही इसमें उनके साथ है।
Author | Gyan Bhed |
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ISBN | 812881754X |
Pages | 320 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 812881754X |
सद्गुरु की शरण में जाकर एक नया जन्म होता है। जहां पुराना गलकर पिघल जाता है और सिर्फ रह जाता है- एक नया मनुष्य। नया मनुष्य बनना अर्थात् बंधनों से मुक्त होना, बचचे सा निर्दोष बनना। कोरी स्लेट बनना। यह प्रयास से नहीं समझ या बोध से होता है और समझ् के अंदर विस्फोट से होता है। पर्त दर पर्त अपने को उघाड़ता जाना है। अचेतन को चेतन बनाना है। यह तभी संभव होता है जब नजर उस नजर से मिल जाए और कहने को सिर्फ रह जाए- उस नजर ने क्या से क्या बना दिया।’ इस पुस्तक में आत्मा को स्वयं के अहंकारबोध से मुक्तकर अस्तित्व के द्वार पर आखिरी छलांग लगाना चाहते हैं। सद्गुरु की अनुकंपा और करुणा ही इसमें उनके साथ है।
ISBN10-812881754X