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कहां वे कहां ये-0

कहां वे कहां ये

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पिछले एक-डेढ़ दशक में हास्‍य-व्‍यंग्‍य में जिन नई प्रतिभाओं ने प्रवेश किया है उनमें प्रवीण शुक्‍ल्‍ा के पद चिन्‍ह सबसे अधिक उज्‍जवल और उभरे हुए हैं।
प्रवीण की कविताओं का फलक विस्‍तृत है। विविध विषयों पर उन्‍होंने काव्‍य रचना की है। उनके हास्‍य में हास्‍य मात्र हंसाने के लिये नहीं है। अपितु साभिप्राय है। उसके पीछे राष्‍ट्र समाज या व्‍यक्ति की पीड़ा अन्‍तर्निहित है। कई बार तो वह थोड़े से शब्‍दों में बहुत बड़ी बात कहकर ‘सूक्ति’ की निर्मित कर देता है।
व्‍यंग्‍य में प्रवीणता है, प्रगल्‍भता है, कसमसाहट है क्षोभ या क्रोध नहीं। व्‍यंग्‍य को सीमा में रखकर सफलता से सम्‍प्रेषित करना कठिन कार्य है। जिसे प्रवीण शुल्‍क ने बखूबी किया है।

Additional information

Author

Praveen Shukla

ISBN

9798128809438

Pages

176

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8128809431

पिछले एक-डेढ़ दशक में हास्‍य-व्‍यंग्‍य में जिन नई प्रतिभाओं ने प्रवेश किया है उनमें प्रवीण शुक्‍ल्‍ा के पद चिन्‍ह सबसे अधिक उज्‍जवल और उभरे हुए हैं।
प्रवीण की कविताओं का फलक विस्‍तृत है। विविध विषयों पर उन्‍होंने काव्‍य रचना की है। उनके हास्‍य में हास्‍य मात्र हंसाने के लिये नहीं है। अपितु साभिप्राय है। उसके पीछे राष्‍ट्र समाज या व्‍यक्ति की पीड़ा अन्‍तर्निहित है। कई बार तो वह थोड़े से शब्‍दों में बहुत बड़ी बात कहकर ‘सूक्ति’ की निर्मित कर देता है।
व्‍यंग्‍य में प्रवीणता है, प्रगल्‍भता है, कसमसाहट है क्षोभ या क्रोध नहीं। व्‍यंग्‍य को सीमा में रखकर सफलता से सम्‍प्रेषित करना कठिन कार्य है। जिसे प्रवीण शुल्‍क ने बखूबी किया है।

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