क्या कहते है पुराण
क्या कहते है पुराण
₹125.00
In stock
Other Buying Options
प्राचीनकाल से ही पुराण देवताओं, ॠषियों, मुनियों, मनुष्यों सभी का मार्गदर्शन करते आ रहे है। पुराण उचित-अनुचित का ज्ञान करवाकर मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करते हैं। मनुष्य-जीवन की वास्तविक आधारशिला पुराण ही है।
पुराण वस्तुत वेदों का ही विस्तार हैं, लेकिन वेद बहुत ही जटिल तथा शुष्क भाषा-शैली में लिखे गए हैं। अत पाठको के लिए विशिष्ट वर्ग तक ही इनका रुझान रहा। संभवत यही विचार करके वेदव्यास जी ने पुराणों की रचना और पुरर्रचना की होगी।
पुराण-साहित्य में अवतारवाद को प्रतिष्ठत किया गया है। निर्गुण निराकार की सत्ता को स्वीकार करते हुए सगुण साकार की उपासना का प्रतिपादन इन ग्रंथों का मूल विषय है। पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र बिंदु बनाकर पाप और पुण्य, धर्म अधर्म तथा कर्म और अकर्म की गाथाएं कही गई हैं।
इसलिए पुराणोंमें देवी-देवताओं के विभिन्न स्वरूपों को लेकर मूल्य के स्तर पर एक विराट आयोजन मिलता है। बात और आश्चर्यजनक पुराणों में मिलती है। वह यह कि सत्कर्म की प्रतिष्ठा की प्रक्रिया में उसने देवताओं की दुष्प्रवृत्तियों को भी विस्तृत रूप में वर्णित किया है किंतु उसका मूल उद्देश्य सद्भावना का विकास और सत्य की प्रतिष्ठा ही है।
ISBN10-812880636X
Additional information
Author | Mahesh Dutt Sharma |
---|---|
ISBN | 812880636X |
Pages | 208 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 812880636X |
Related Products
Related products
-
Autobiography & Memories, Books
₹499.00Original price was: ₹499.00.₹399.00Current price is: ₹399.00. Add to cart
Social Media Posts
This is a gallery to showcase images from your recent social posts