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क्या मेरा क्या तेरा (कबीर वाणी)
Author | Osho |
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ISBN | 8171823653 |
Pages | 168 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171823653 |
यह कबीर के संबंध में पहली बात समझ लेनी जरूरी है। वहां पाण्डित्य का कोई अर्थ नहीं है। कबीर खुद भी पंडितनहीं है। कहा है कबीर ने ‘मसि कागद छूयौ नहीं, कलम गही नहीं हाथ।‘ – कागज-कलम से उनकी कोई पहचान नहीं है। ‘लिखा-लिखी की है नहीं, देखा-देखी बात’ – कहा है कबीर ने। जो देखा है, वहीं कहा है। जो चखा है वहीं कहा है।
कबीर के वचन अनूठे हैं, झूठे जरा भी नहीं। और कबीर-जैसा जगमगाता तारा मुश्किल से मिलता है।
कबीर की सबसे बड़ी अद्वितीय तो यही है उन्होंने जो कहा अपने ही स्वानुभव से कहा है। और चूंकि कबीर पंडित नहीं है, इसलिए सिद्धांतों में उलझने का कोई उपाय भी नहीं था।
ओशो द्वारा कबीर-वाणी पर दिए गए दस अमृत प्रवचनों के संकलन ‘कहे कबीर मैं पूरा पाया’ से लिए गए पांच (1-5) इस प्रस्तक में संकलित हैं
ISBN10-8171823653