‘जंगल, जानवर और आदमी’ अपने शीर्षक में प्रयुक्त पूर्वा पर शब्दों की उत्तरोत्तर विकास-यात्रा है। यह एक ओर मानव की विकास-यात्रा के क्रम में अनेक रहस्यों का उद्घाटन करने वाला ग्रंथ है तो दूसरी ओर पर्यावरण-परिरक्षण एवं प्रदूषण-निवारण का तत्व-चिंतन भी है। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि पशु आत्महत्या नहीं करते, जबकि मनुष्य करता है। मनुष्य मूलत शाकाहारी प्राणी है, किंतु दुर्भाग्य-वश वह मांसाहारी बन गया है। और उचित प्राकृतिक जीवन भूल गया हैं। आचार्य निशांतकेतु मूलत कवि और कथाकार हैं, आपने लघुकथा, संस्मरण, ललितनिबंध, आलोचना, पुस्तक-समीक्षा और साहित्येतिहास जैसी साहित्य विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की है। बाल-साहित्य, भाषा-विज्ञान, वाग्ज्ञिान, भू-भाषिकी पाठाचेलन और व्याकरण जैसे विषयों पर भी आपके अनेक ग्रंथ प्रकाशित हैं।
राजेश शर्मा