श्री जोगिन्द्र सिंह जी कंवल की साहित्यिक यात्रा, मेरा देश मेरे लोग से प्रारंभ हुई थी। वह एक मर्मस्पर्शी रचना थी, जिसकी समालोचना भी प्रकाशित की जा चुकी है तब से प्रारंभ हुई इस साहित्यिक यात्रा की नवीनतम कृति है- दर्द अपने-अपने।
श्री कंवल फीजी एक सर्वाधिक लब्धप्रतिष्ठ लेखक हैं। उनके चिंतन में गहराई है।
फीजी में प्राकृतिक सौंदर्य एवं मौसम के संगीत के सिवाय अनेक परिवारों में एक दर्द की अनुभूति है। एक बिखराव है। एक ठहराव है एक हताशा है। संभवत चेतना में एक कराह और लाचारी की भावना भी है।
जोगिन्द्र जी ने इस सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से चित्रित करने का सफल प्रयास किया है। एक ओर जहां यौवन की उमंग, जीवन का सौंदर्य और मधुरतम मानवीय भावनाओं का अभूतपूर्व चित्रण है, वहीं दूसरी ओर जीवन का भयावह, अंधेरा और कसक का भी एहसास परिलक्षित होता है इनकी रचनाओं में।
इनकी रचनाएं उन सुंदर कलाकृतियों की तरह हैं, जिन्हें बड़े परिश्रम से तराशा गया हो।
आज इस लेख में अपने विचार प्रकट करना चाहता हूं।
इस पुस्तक के पहले भाग के विषय काफी गंभीर है। इसलिए तेरे-मेरे निजी प्यार की बातें इसमें शामिल न करूं।
इस कू के बाद देश को, खासकर भारतीय समाज को, अनगिनत कष्टों का सामना करना पड़ा। अगर इन मुसीबतों के बारे में लिखना शुरू कर दूं तो सैंकड़ों पृष्ठों की जरूरत पड़ेगी। बस इतना कह देना काफी होगा कि आजकल सब लोग अपने-अपने सीनों में कई प्रकार के दर्द छिपाकर चलते फिरते हैं।
दर्द अपने अपने
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श्री जोगिन्द्र सिंह जी कंवल की साहित्यिक यात्रा, मेरा देश मेरे लोग से प्रारंभ हुई थी। वह एक मर्मस्पर्शी रचना थी, जिसकी समालोचना भी प्रकाशित की जा चुकी है तब से प्रारंभ हुई इस साहित्यिक यात्रा की नवीनतम कृति है- दर्द अपने-अपने।
श्री कंवल फीजी एक सर्वाधिक लब्धप्रतिष्ठ लेखक हैं। उनके चिंतन में गहराई है।
फीजी में प्राकृतिक सौंदर्य एवं मौसम के संगीत के सिवाय अनेक परिवारों में एक दर्द की अनुभूति है। एक बिखराव है। एक ठहराव है एक हताशा है। संभवत चेतना में एक कराह और लाचारी की भावना भी है।
जोगिन्द्र जी ने इस सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से चित्रित करने का सफल प्रयास किया है। एक ओर जहां यौवन की उमंग, जीवन का सौंदर्य और मधुरतम मानवीय भावनाओं का अभूतपूर्व चित्रण है, वहीं दूसरी ओर जीवन का भयावह, अंधेरा और कसक का भी एहसास परिलक्षित होता है इनकी रचनाओं में।
इनकी रचनाएं उन सुंदर कलाकृतियों की तरह हैं, जिन्हें बड़े परिश्रम से तराशा गया हो।
आज इस लेख में अपने विचार प्रकट करना चाहता हूं।
इस पुस्तक के पहले भाग के विषय काफी गंभीर है। इसलिए तेरे-मेरे निजी प्यार की बातें इसमें शामिल न करूं।
इस कू के बाद देश को, खासकर भारतीय समाज को, अनगिनत कष्टों का सामना करना पड़ा। अगर इन मुसीबतों के बारे में लिखना शुरू कर दूं तो सैंकड़ों पृष्ठों की जरूरत पड़ेगी। बस इतना कह देना काफी होगा कि आजकल सब लोग अपने-अपने सीनों में कई प्रकार के दर्द छिपाकर चलते फिरते हैं।
Additional information
Author | Joginder Singh Kanwal |
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ISBN | 8171827675 |
Pages | 140 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171827675 |