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आचार्य श्री वल्लभाचार्य का छठा ग्रंथ है ‘नवरत्नबोध्’। “महापुरुषोंके हृदयरूपी तिजोरी में बंद ज्ञान शिष्यों की प्रश्न रूपी चाबी से खुलता है।“ चाहे वह जिज्ञासा के रूप में हो चाहेसंशय के रूप में जब तक शिष्य सवाल नहीं करेगा तब तक गुरु जबाव कैसे देगा। वक्ता के पास बुद्धि हो ज्ञान हो बाकी श्रोता जब तक उनके पास बैठेगा नहीं तब तक वक्ता बोलेगा क्या ’नवरत्न’ का इसीलिए प्रकाटय हुआ है कि सर्वस्व समर्पण के बाद मानव का सहज स्वभाव है चिन्ता करना। मनबुद्धि तर्क करता है। विचार करता है। “संसार का चिंतन ही चिन्ता है।“ जो व्यक्ति लोक का समाज का, परिवार का चिन्तन कर रहे हें वह चिन्ता ही है। भगवान ने जगह-जगह पर अपने शब्दों के माध्यम से वचन दिया है। ‘तू चिन्ता मत कर। तू मेरा चिन्तन करेगा तो मै तेरी चिन्ता करूंगा।“ जनमानस को इसी चिंता से छुटकारा दिलाने के लिए यह पुस्तक लिखी गई है।
Author | Kirit Bhai |
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ISBN | 8128809369 |
Pages | 128 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128809369 |
आचार्य श्री वल्लभाचार्य का छठा ग्रंथ है ‘नवरत्नबोध्’। “महापुरुषोंके हृदयरूपी तिजोरी में बंद ज्ञान शिष्यों की प्रश्न रूपी चाबी से खुलता है।“ चाहे वह जिज्ञासा के रूप में हो चाहेसंशय के रूप में जब तक शिष्य सवाल नहीं करेगा तब तक गुरु जबाव कैसे देगा। वक्ता के पास बुद्धि हो ज्ञान हो बाकी श्रोता जब तक उनके पास बैठेगा नहीं तब तक वक्ता बोलेगा क्या ’नवरत्न’ का इसीलिए प्रकाटय हुआ है कि सर्वस्व समर्पण के बाद मानव का सहज स्वभाव है चिन्ता करना। मनबुद्धि तर्क करता है। विचार करता है। “संसार का चिंतन ही चिन्ता है।“ जो व्यक्ति लोक का समाज का, परिवार का चिन्तन कर रहे हें वह चिन्ता ही है। भगवान ने जगह-जगह पर अपने शब्दों के माध्यम से वचन दिया है। ‘तू चिन्ता मत कर। तू मेरा चिन्तन करेगा तो मै तेरी चिन्ता करूंगा।“ जनमानस को इसी चिंता से छुटकारा दिलाने के लिए यह पुस्तक लिखी गई है।
ISBN10-8128809369
Business and Management, Religions & Philosophy
Hinduism, Religions & Philosophy