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Nav Sanyas Kya
Author | Osho |
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ISBN | 8171822312 |
Pages | 160 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171822312 |
‘ एक संन्यास है जो इस देश में हजारों वर्षों से प्रचलित है, जिससे हम सब भलीभांति परिचित हैं। उसका अभिप्राय कुल इतना है कि आपने घर-परिवार छोड दिया, भगवे वस्त्र पहन लिए, चल पड़े जंगल की ओर यदि वह संन्यास है तो वह तो त्याग का दूसरा नाम है, वह जीवन से भगोड़ापन है, पलायन है। लेकिन जो लोग संसार से भागने की अथवा संसार को त्यागने की हिम्मत न जुटा सके, मोह में बंधे रहे, उन्हें त्याग का यह कृत्य बहुत महान लगने लगा, वे ऐसे संन्यासी की पूजा और सेवा करते रहे और संन्यास के नाम पर निर्भरता का यह कार्य का यह कार्य चलता रहा।
धीरे-धीरे संन्यास पूर्णत सड़ गया संन्यास से वे बांसुरी के खो गए जो भगवान श्रीकृष्ण के समय कभी गूंजे होंगे-संन्यास के मौलिक रूप में। अथवा राजाजनक के समय संन्यास जो गहराई हुई थी, संसार में कमल की भांति खिल कर जीने वाला संन्यास नदारद हो गया।
वर्तमान समय में ओशो ने सम्यक संन्यास को पुनरुज्जीवित किया है। ओशो ने पुन उसे बुद्ध का ध्यान, कृष्ण की बांसुरी, मीरा के घुंघरू और कबीर की मस्ती दी है। संन्यास पहले कभी भी इतना समृद्ध न था जितना आज ओशो के संस्पर्श से हुआ है। इसलिए यह नवसंन्यास है। इस अनूठी प्रवचनमाला के माध्यम से संन्यास के अभिनव आयाम में आपको निमंत्रण है।