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निरगुण का विश्राम
Author | Osho |
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ISBN | 8171823661 |
Pages | 152 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171823661 |
कबीर कहते हैं वेद कहता है कि सगुण के आगे है निर्गुण-जहां सगुण समाप्त होता है, वहां निर्गुण शुरू होता है, जहां आकार समाप्त होता है, स्वभाव वहां निराकार शुरू होता है।
‘कहै वेद सरगुन के आगे निरगुण का बिसराम’
कबीर कहते हैं, वेद से भी आगे चलो, क्योंकि वेद क्या कहेगा, वेद तो भाषा है वेद तो शब्द है। वेद तो सिद्धांत है। वेद तो लिखा हुआ है, और उसे अलेखे को कौन कब लिख पाया है। उससे आगे चलो।
‘सरगुण निरगुण तजहु सोहागिन देख सबहि निजधाम’
और जैसे ही तुमने सगुण और निर्गुण छोड़ दिया, द्वंद्व, विपरीतता छोड़ दी, वैसी ही सभी तरफ घट-घट में उसकी का धाम है। तब कण-कण तीर्थ, और श्वास-श्वास पूजा और अर्चना तब सभी कुछ पवित्र है, क्योंकि सभी जगह वहीं है-
इस पुस्तक में कबीर-वाणी पर ओशो द्वारा दिए गए प्रवचनों को संकलित किया गया है। ISBN10-8171823661