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न संसार न मुक्ति-0
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Ashtavakra Mahageeta Bhag- VI Na Sansar Na Mukti (अष्टावक्र महागीता भाग- 6 न संसार न मुक्ति)

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Ashtavakra Mahageeta Bhag- Vi Na Sansar Na Mukti (अष्टावक्र महागीता भाग- 6 न संसार न मुक्ति)
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पुस्तक के बारे में

जब तक सहारा है तब तक मन रहेगा। सहारा मन को ही चाहिए। आत्मा को किसी सहारे की जरूरत नहीं है। मन लंगड़ा है; इसको बैसाखियां चाहिए। तुम बैसाखी किस रंग की चुनते हो इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता । मन को कुछ उपद्रव चाहिए, व्यस्तता चाहिए, आक्युपेशन चाहिए । किसी बात में उलझा रहे। माला ही फेरता रहे तो भी चलेगा। रुपयों की गिनती करता रहे तो भी चलेगा। काम से घिरा रहे तो भी चलेगा। रामनाथ की चदरिया ओढ़ ले, राम-राम बैठकर गुनगुनाता रहे तो भी चलेगा। लेकिन कुछ काम चाहिए । कुछ कृत्य चाहिए। कोई भी कृत्य दे दो, हर कृत्य की नाव पर मन यात्रा करेगा और संसार में प्रवेश कर जाएगा ।

लेखक के बारे में

ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।

अष्टावक्र क्यों प्रसिद्ध है?

अष्टावक्र अपने गहन ज्ञान, अद्वितीय आध्यात्मिक दृष्टिकोण और शिक्षाओं के लिए प्रसिद्ध हैं, जो विशेष रूप से अष्टावक्र गीता में प्रस्तुत हैं। अष्टावक्र गीता एक अद्वितीय ग्रंथ है जिसमें आत्मज्ञान, अद्वैत (अद्वैत वेदांत), और आत्मा की स्वतंत्रता पर उनके विचार मिलते हैं। अष्टावक्र के संवाद राजा जनक के साथ हुए थे, जिनमें उन्होंने जीवन के वास्तविक स्वरूप, आत्मा की मुक्ति और ध्यान के माध्यम से शांति प्राप्त करने का मार्ग बताया। उनकी शिक्षाएँ सरल और सीधे आत्मा की ओर संकेत करती हैं, और इसलिए वे आध्यात्मिक साधकों के बीच अत्यधिक आदर और प्रसिद्धि पाते हैं।

अष्टावक्र ग्रंथ के अनुसार, व्यक्ति को संसार में रहते हुए मुक्ति कैसे प्राप्त हो सकती है?

व्यक्ति को संसार में रहते हुए भी मुक्ति प्राप्त हो सकती है जब वह स्वयं को संसार के कार्यों और इच्छाओं से परे समझता है, जैसा कि अष्टावक्र ने जनक को समझाया।

अष्टावक्र महागीता के सिद्धांत आज के समय में भी प्रासंगिक हैं?

हां, इसके सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि यह आत्मज्ञान, शांति, और आंतरिक संतुलन का मार्ग दिखाते हैं, जो हर युग में महत्वपूर्ण हैं।

अष्टावक्र महागीता में व्यक्त ‘द्वंद्वहीनता’ का क्या अर्थ है?

इसका अर्थ है कि आत्मज्ञान की अवस्था में व्यक्ति सुख-दुख, लाभ-हानि आदि द्वंद्वों से परे हो जाता है। वह स्थितप्रज्ञ हो जाता है, जिसे न किसी चीज़ से आकर्षण होता है न विकर्षण।

अष्टावक्र महागीता का अध्ययन किन्हें करना चाहिए?

जो व्यक्ति आत्मिक शांति, जीवन का गहन सत्य, और आध्यात्मिक उत्थान की खोज में हैं, उन्हें इसका अध्ययन करना चाहिए।

Additional information

Weight 390 g
Dimensions 21.6 × 14 × 1.8 cm
Author

Osho

ISBN

8189605828

Pages

144

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Fusion Books

ISBN 10

8189605828

जब तक सहारा है तब तक मन रहेगा। सहारा मन को भी चाहिए। आत्मा को किसी सहारे की जरूरत नहीं है। मन कमजोर है, इसको बैसाखियाँ चाहिए। तुम बैसाखियाँ गिरा दो तो पूछते हो इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। मन को कुछ उपवास चाहिए, असक्तता चाहिए, आयुष्यमान चाहिए। किसी बात में उलझा रहे, मायाजाल में फैलता रहे तो भी चलेगा। रूपयों की गिनती करता रहे तो भी चलेगा। काल के पिंजरे में रहे तो भी चलेगा। रामनाम की जपमाला ओढ़ ले, राम-राम बोलकर गुनगुनाता रहे तो भी चलेगा। लेकिन कुछ काम चाहिए। कुछ क्रिया चाहिए। कोई भी क्रिया दे दो, हर क्रिया की नाव पर मन यात्रा करेगा और संसार में प्रवेश कर जाएगा।
ISBN10-8189605828

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