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अधिकांश ज्योतिषकारों का यह मत है कि इंसान का भाग्य जन्म से ही उसके हाथ की रेखाओं में पूर्व निश्चित होता है। किंतु मैं इसे नहीं मानता, क्योंकि मेरे साईं ने सबको सदा यह संदेश दिया था कि इंसान का भाग्य और हस्त रेखाएं, उसके कर्मानुसार निरंतर बनती और बिगड़ती रहती हैं। अत प्रारब्ध के अनुसार, जन्म के समय हमारे भागय में जो पूर्व निश्चित था, उसे हम अपने कर्मों के अनुसार बदल सकते हैं।
साईंश्री से आत्मिक प्रेरणा पाकर, मैंने उनके आत्म निर्देश के अनुसार, उनकी एक सतत् साधना के सहारे इस प्रयास में प्रत्येक साईं भक्त की जिज्ञासा उत्कंठा, चिंता और उलझन का पूर्ण साईंश्री से समुचित उत्तर पाकर, यथायोग्य साध्य द्वारा अपनी समस्या से मुक्त होने में सफल हो सकेंगे।
सुशील भारती
Author | Sushil Bharti |
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ISBN | 8171825206 |
Pages | 144 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171825206 |
अधिकांश ज्योतिषकारों का यह मत है कि इंसान का भाग्य जन्म से ही उसके हाथ की रेखाओं में पूर्व निश्चित होता है। किंतु मैं इसे नहीं मानता, क्योंकि मेरे साईं ने सबको सदा यह संदेश दिया था कि इंसान का भाग्य और हस्त रेखाएं, उसके कर्मानुसार निरंतर बनती और बिगड़ती रहती हैं। अत प्रारब्ध के अनुसार, जन्म के समय हमारे भागय में जो पूर्व निश्चित था, उसे हम अपने कर्मों के अनुसार बदल सकते हैं।
साईंश्री से आत्मिक प्रेरणा पाकर, मैंने उनके आत्म निर्देश के अनुसार, उनकी एक सतत् साधना के सहारे इस प्रयास में प्रत्येक साईं भक्त की जिज्ञासा उत्कंठा, चिंता और उलझन का पूर्ण साईंश्री से समुचित उत्तर पाकर, यथायोग्य साध्य द्वारा अपनी समस्या से मुक्त होने में सफल हो सकेंगे।
सुशील भारती