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Bihari Satsai Hindi
Author | Aarti Gandhi |
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ISBN | 9789351654391 |
Pages | 200 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 9351654397 |
श्रृंगार रस के अग्रणी कवि बिहारी ने श्रृंगार के दोनों पक्षों का सजीव वर्णन किया है लेकिन श्रंगार के संयोग पक्ष विशेष रूप से उभर कर सामने आया है। वियोग पक्ष उतना उभर कर सामने नहीं आ पाया है। बिहारी को दूसरे विषयों का भी ज्ञान था। प्रकृति हो, स्त्राी हो या कोई अन्य चीज उसको बिहारी ने बहुत ही करीब से महसूस किया और अपने दोहों की शक्ल दी उसे अपनी मौलिकता प्रदान की और अपने मनोभावों से सजाकर उसे विलक्षण बना दिया। ऐसा करना सिर्फ बिहारी जैसे कवि के ही वश की बात है। बिहारी मूलतः कवि थे वह भी श्रंगारिक कवि। ‘सतसई’ इसका जीता-जागता उदाहरण है। कहा जा सकता है, जो भाव-गाम्भीर्य बिहारी के दोहों में है वह गागर में सागर भरने जैसा ही है। इसीलिए तो उनके बारे में कहा गया है।
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखत में छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर।।