₹30.00
तुम्हारे बेहोश होने पर ही मन तुम्हारा मालिक हो जाता है। तब तुम बेहोश रहते हो, तब ही मन अपनी मर्जी चलाता है। फिर उस बेहोसी में तुम ऐसे-ऐसे काम कर जाते हो, जो शायद होश में तुम कभी भी नहीं कर पाओ। जितना ध्यान का रस गहरा होता जाएगा, उतना-उतना तुम्हारा मन और मन के विकार तुम्हारे देखते-देखते ही कम होने लग जाएंगे, उन्हें अलग से हटाना नहीं पड़ेगा।
Author | Anandmurti Guru Maa |
---|---|
ISBN | 8128815083 |
Pages | 288 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128815083 |
तुम्हारे बेहोश होने पर ही मन तुम्हारा मालिक हो जाता है। तब तुम बेहोश रहते हो, तब ही मन अपनी मर्जी चलाता है। फिर उस बेहोसी में तुम ऐसे-ऐसे काम कर जाते हो, जो शायद होश में तुम कभी भी नहीं कर पाओ। जितना ध्यान का रस गहरा होता जाएगा, उतना-उतना तुम्हारा मन और मन के विकार तुम्हारे देखते-देखते ही कम होने लग जाएंगे, उन्हें अलग से हटाना नहीं पड़ेगा।
Indian Philosophy, Books, Diamond Books