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महकी माटी महके कण कण – एक स्त्रोत है जो कवि द्वारा भारत के प्रर्ति आ वाक्यों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति है। भारत की सर्वप्रियता के राग का एक ऐसा प्रकाश है जो इस की माटी के भीतर निहीत है और यही प्रेम का अणु भारत की कोटिश जनता के हृदय में विश्व-राग की मशाल को सम्हाले हुए हैं। सद्भावना और सर्व-र्ध्म समभाव की यह कविताएँ पहली बार उस युग को कवि द्वारा स्वतंत्राता संग्राम के उत्तर युग के मानस में स्थापित करती है जहाँ हम सब कुछ भूल गये हैं। स्वयं की अस्मिता और नागरिक के कर्तव्य बोध् को उजागर करती नारायण दास जाजू की यह कविताएँ युगान्तकारी परिवर्तनों को रेखांकित करती हैं, जहाँ हम अपनी खोई हुई विरासत की धती को कवि के शब्दों की आत्मा में पा लेते हैं। इस अर्थ में नारायण दास जाजू युगदृष्टा और युग सृष्टा कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं।
Author | Narayandas Jaju |
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ISBN | 9789350834664 |
Pages | 24 |
Format | Paper Back |
Language | Hindi |
Publisher | Jr Diamond |
ISBN 10 | 9350834669 |
महकी माटी महके कण कण – एक स्त्रोत है जो कवि द्वारा भारत के प्रर्ति आ वाक्यों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति है। भारत की सर्वप्रियता के राग का एक ऐसा प्रकाश है जो इस की माटी के भीतर निहीत है और यही प्रेम का अणु भारत की कोटिश जनता के हृदय में विश्व-राग की मशाल को सम्हाले हुए हैं। सद्भावना और सर्व-र्ध्म समभाव की यह कविताएँ पहली बार उस युग को कवि द्वारा स्वतंत्राता संग्राम के उत्तर युग के मानस में स्थापित करती है जहाँ हम सब कुछ भूल गये हैं। स्वयं की अस्मिता और नागरिक के कर्तव्य बोध् को उजागर करती नारायण दास जाजू की यह कविताएँ युगान्तकारी परिवर्तनों को रेखांकित करती हैं, जहाँ हम अपनी खोई हुई विरासत की धती को कवि के शब्दों की आत्मा में पा लेते हैं। इस अर्थ में नारायण दास जाजू युगदृष्टा और युग सृष्टा कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं।
ISBN10-9350834669