लिखा कि लिखी की है नहीं (कबीर वाणी)
लिखा कि लिखी की है नहीं (कबीर वाणी)
₹75.00 Original price was: ₹75.00.₹60.00Current price is: ₹60.00.
Out of stock
Other Buying Options
एक-एक शब्द बहुमूल्य है। उपनिषद फीके पड़ जाते हैं कबीर के सामने। वेद दयनीय मालूम पड़ने लगता है। कबीर बहुत अनूठे हैं। बेपढ़े लिखे हैं लेकिन जीवन के अनुभव से उन्होंने कुछ सार पा लियाहै। और चूंकि वे पंडित नहीं है, इसलिए सार की बात संक्षिप्त में कह दी है उसमें विस्तार नहीं है बीज की तरह उनके वचन है- बीज-मंत्र की भांति।
‘प्रेम नबाड़ी ऊपजै प्रेम नहा टका बकाय।
राजा-परजा जेहि रुचै सीस देय लै जाय।‘
बगीचे में प्रेम नहीं पैदा होता, न बाजार में उसकी बिक्री होती है- और प्रेम के जगत में राजा और प्रजा का भी कोई भेद नहीं है, गरीब अमीर का कोई सवाल नहीं है। जिसको भी प्रेम चाहिए हो, उसको अपने को खोना पड़ेगा-अपने अहंकार को, अपने दंग को, ‘मैं’ भाव को- वहीं सीस है, सिर खोना पड़ेगा। ISBN10-8171823254
Additional information
Author | Osho |
---|---|
ISBN | 8171823254 |
Pages | 136 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171823254 |
Related Products
Related products
Social Media Posts
This is a gallery to showcase images from your recent social posts