लिखा कि लिखी की है नहीं (कबीर वाणी)
लिखा कि लिखी की है नहीं (कबीर वाणी)
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एक-एक शब्द बहुमूल्य है। उपनिषद फीके पड़ जाते हैं कबीर के सामने। वेद दयनीय मालूम पड़ने लगता है। कबीर बहुत अनूठे हैं। बेपढ़े लिखे हैं लेकिन जीवन के अनुभव से उन्होंने कुछ सार पा लियाहै। और चूंकि वे पंडित नहीं है, इसलिए सार की बात संक्षिप्त में कह दी है उसमें विस्तार नहीं है बीज की तरह उनके वचन है- बीज-मंत्र की भांति।
‘प्रेम नबाड़ी ऊपजै प्रेम नहा टका बकाय।
राजा-परजा जेहि रुचै सीस देय लै जाय।‘
बगीचे में प्रेम नहीं पैदा होता, न बाजार में उसकी बिक्री होती है- और प्रेम के जगत में राजा और प्रजा का भी कोई भेद नहीं है, गरीब अमीर का कोई सवाल नहीं है। जिसको भी प्रेम चाहिए हो, उसको अपने को खोना पड़ेगा-अपने अहंकार को, अपने दंग को, ‘मैं’ भाव को- वहीं सीस है, सिर खोना पड़ेगा।
Additional information
Author | Osho |
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ISBN | 8171823254 |
Pages | 136 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171823254 |