लूटनीति मंथन कारी

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काका हाथरसी जीवित किंवदंती थे। उनका व्‍यक्तित्‍व तथा उनकी सोच हास्‍यरस में पगी हुई थी। यह उनकी आसान शैली का ही कमाल था जिसने लाखों लोगों को उनका दीवाना बनाया। हिंदी के प्रसार में उनकी अदृश्‍य किंतु प्रबल भूमिका रही है, जिसको उनके समकालीन कवि एवं साहित्‍यकारों ने भी स्‍वीकार किया है।
इस पुस्‍तक में, काका जी ने विभिन्‍न विषयों पर अपने विचार दोहों के रूप में व्‍यक्‍त किए हैं। ये दोहे अपने-आपमें किसी फलसफे से कम नहीं हैं औेर उनकी प्रगतिवादी सोच की झलक देते हैं। इनमें हास्‍य तो है ही, साथ-साथ व्‍यंग्‍य का भी रोचक पुट है। इन दोहों के माध्‍यम से उन्‍होंने आज की राजनीति तथा सामान्‍य जीवन में व्‍याप्‍त आचरण की अशुद्धता पर जम कर चोट की है। ये दोहे काका जी की सशक्‍त लेखनी और शैली की प्रभावात्‍मकता का पुष्‍ट प्रमाण हैं।

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काका हाथरसी जीवित किंवदंती थे। उनका व्‍यक्तित्‍व तथा उनकी सोच हास्‍यरस में पगी हुई थी। यह उनकी आसान शैली का ही कमाल था जिसने लाखों लोगों को उनका दीवाना बनाया। हिंदी के प्रसार में उनकी अदृश्‍य किंतु प्रबल भूमिका रही है, जिसको उनके समकालीन कवि एवं साहित्‍यकारों ने भी स्‍वीकार किया है।
इस पुस्‍तक में, काका जी ने विभिन्‍न विषयों पर अपने विचार दोहों के रूप में व्‍यक्‍त किए हैं। ये दोहे अपने-आपमें किसी फलसफे से कम नहीं हैं औेर उनकी प्रगतिवादी सोच की झलक देते हैं। इनमें हास्‍य तो है ही, साथ-साथ व्‍यंग्‍य का भी रोचक पुट है। इन दोहों के माध्‍यम से उन्‍होंने आज की राजनीति तथा सामान्‍य जीवन में व्‍याप्‍त आचरण की अशुद्धता पर जम कर चोट की है। ये दोहे काका जी की सशक्‍त लेखनी और शैली की प्रभावात्‍मकता का पुष्‍ट प्रमाण हैं।

Additional information

Author

Kaka Hathrasi

ISBN

8171824560

Pages

176

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8171824560