भगवान शिव कहते है ”उद्यम ही भैरव है।“ उद्यम से यहाँ मतलब है ऐसा कर्म जो उत्थान के लिये किया जाये। कर्म इन तीन तलों पर होता है – आप क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं और क्या काम करते हैं? ये तीनों तल आपके कर्म निर्मित करते है। अगर इन तीनों तलों पर आप अपने उत्थान पर सौ प्रतिशत एकनिष्ठ हैं, तब वह उद्यम है। तब आप उस क्रिया को उद्यम कह सकते है। और उद्यम का कभी कर्म नहीं बनता, यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात समझने की है। आप सामान्यतः कर्म करते रहते हो और कर्म बन्धन बनते रहते हैं, चाहे वो अच्छे कर्म हांे, चाहे वो बुरे कर्म हों। पर अगर वो उद्यम है, तो वह चेतना के तल पर है। वह संसार के तल पर, शरीर के तल पर नहीं है। अस्तित्व में उसका लेखा जोखा चेतना के तल पर होता है। इसलिये उसका कोई कर्म नहीं बनता। तो उद्यम को जीयो, कर्मों को मत जीयो। तभी मंैं बार-बार बोलता हूँ कि अपने उत्थान पर केन्द्रित रहो। जो भी आप कर्म करते हैं, सोचते हैं या महसूस करते हैं, वह एकनिष्ठता से आपके उत्थान के लिये होना चाहिये। इसलिये यहाँ पर उद्यम शब्द का इस्तेमाल किया गया है। और शिव के सिवाय इस तरह की बात कोई नहीं बोलेगा क्योंकि उसके लिये बहुत ज्òयादा गहराई और ऊँचाई की आवश्यकता है। इतने थोडòे में उन्होंने सब कुछ बोल दिया है।
…इस पुस्तक से