सांख्य दर्शन
सांख्य दर्शन
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सभी मत वाले मानते हैं कि दर्शन की दृष्टि से सांख्य-दर्शन या जीवन की सांख्य-प्रणाली आदि प्रणालियों में मानी जाती है और भारतीय चिंतन-परंम्परा की बात करते हुए ‘के. दामोदरन’ ने उसे मूल वैदिक प्रणाली नहीं माना और उनका यह भी कहना है कि महाभारत आदि में सांख्य की विचारधारा मिल जाती है। उनके विचार में सांख्य की विचारधारा मिल जाती है। उनके विचार में सांख्य विचार-पद्धति, जो प्राचीनतम दार्शनिक प्रणालियों में से एक है, भारत के वैचारिक जीवन को एक लंबे समय तक काफी प्रभावित किए रही। कुछ विद्वानों के मतानुसार इस प्रणाली का नाम सांख्य-प्रणाली इसलिए पड़ा कि यह वैदिक अवधारणाओं से नहीं, वरन तर्कपूर्ण और युक्तियंक्त चिंतन के द्वारासत्य की प्राप्ति की समर्थक थी। सांख्य-प्रणाली, जैसा कि डैवीजी ने कहा है ‘विश्व की उत्पत्ति, मनुष्य की प्रकृति और उनके पारस्परिक संबंधों तथा उनके भविष्य के बारे में प्रत्येक विचारवान मनुष्य के मस्तिष्क में उठने वाले रहस्यपूर्ण प्रश्नों के केवल युक्ति द्वारा उत्तर देने का अब तक उपलब्ध प्राचीनतम प्रयास है। ISBN10-8128818325
Additional information
Author | Vinay |
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ISBN | 8128818325 |
Pages | 160 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128818325 |
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