स्वर्णिम सांझ
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सरल, सहज, मृदुल स्वभाव की कवयित्री अमरजीत कौर पिछले सैंतालीस वर्षों से फीजी में रह रही हैं लेकिन पंजाब में अपनी जड़ों से रिश्ता उन्होंने आज तक बनाए रखा है। कविता पढ़ने और लिखने की रूचि इन्हें विरासत में मिली है।
के खालसा कालेज में लगभग पचीस वर्ष अध्यापन का कार्य किया औ अब कालेज की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपना समय समाज सेवा या फिर पढ़ने-लिखने में लगा रही हैं। इनकी इस रचना स्वर्णिम सांझ में अनुभूति, कल्पना और चिन्तन है जो भावना के धरातल पर अनुश्रूत हुआ है। जीवन की ढलती हुई शाम की बेली में फूट पड़ी ये धाराएं भारत की पावन धरा से प्रस्फुटित हो सात समुद्र पार के हमारे इस पावन रमणीक द्वीप के प्रांगण में प्रवाहित होने लगी हैं। प्रवासी भारतीयों के हृदय रूपीभूमि को लहलहा देने के लिए कवयित्री बहन अमरजीत कौर की रचना प्रशंसनीय फुहारें साबित होंगी, सदैव स्मरणीय होकर रहेंगी।
Additional information
Author | Amarjit Kaur |
---|---|
ISBN | 8128813692 |
Pages | 64 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Amrit Books |
ISBN 10 | 8128813692 |
सरल, सहज, मृदुल स्वभाव की कवयित्री अमरजीत कौर पिछले सैंतालीस वर्षों से फीजी में रह रही हैं लेकिन पंजाब में अपनी जड़ों से रिश्ता उन्होंने आज तक बनाए रखा है। कविता पढ़ने और लिखने की रूचि इन्हें विरासत में मिली है।
के खालसा कालेज में लगभग पचीस वर्ष अध्यापन का कार्य किया औ अब कालेज की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपना समय समाज सेवा या फिर पढ़ने-लिखने में लगा रही हैं। इनकी इस रचना स्वर्णिम सांझ में अनुभूति, कल्पना और चिन्तन है जो भावना के धरातल पर अनुश्रूत हुआ है। जीवन की ढलती हुई शाम की बेली में फूट पड़ी ये धाराएं भारत की पावन धरा से प्रस्फुटित हो सात समुद्र पार के हमारे इस पावन रमणीक द्वीप के प्रांगण में प्रवाहित होने लगी हैं। प्रवासी भारतीयों के हृदय रूपीभूमि को लहलहा देने के लिए कवयित्री बहन अमरजीत कौर की रचना प्रशंसनीय फुहारें साबित होंगी, सदैव स्मरणीय होकर रहेंगी।
ISBN10-8128813692
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