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हास्य रस एक लंबे समय से तथाकथित बुदि्धजीवि साहित्यकारों में हेय दृष्टि से देखा जाता है। उसे मंचों पर अश्लीलता, फूहड़पन, आशालीनता, लफ्फाजी के द्वारा श्रोताओंको प्रभावित करने के दोष से समाचार पत्रों में दंडित किया जाता है और आजकल कवि सम्मेलनों की व्यावसायिकता से प्रभावित होकर कुछ कवि ऐसा करने में जुट भी गए हैं। किन्तु महेन्द्र अजनबी इन दोषों से मुक्त एक ऐसा निष्कलुष कवि हैं, जिसने अपनी सार्थक शुभ कविताओं से काव्य-मंच को गरिमा प्रदान की है। आरम्भ से ही इस कवि की वाक्पटुता, शब्द-चयन, आलंकारिक प्रयोग, सहज-सरल-शालीन भाषा तथा विषय के प्रति न्यायपूर्ण संगति स्वाभाविक रूप से स्वत समुदे्वलित होती रही है उसके काव्य संकलन का शीर्षक ‘हंसा-हंसा के मारूंगा’ वैसे विरोधाभास पैदा करता है किन्तु उसके अंतर्निहित जो सरगर्भित अर्थ है, उसकी गहनता में जाकर सोचें तो यह शीर्षक बहुत ही महत्वपूर्ण और साभिप्राय है। हंसाना और वह भी शिष्ट शैली और वाक्यांश से, सरल काम नहीं है। स्मित, मुस्कान, ठहाके से लेकर अट्टहास तक पहुंचाकर लोट-पोट कर देने की स्थिति तक, अजनबी की कविताएं श्रोताओंको ही नहीं, मंच के कवियोंको भी इतने ही आनंद से आन्दोलित कर देती हैं कि वे कह उठते हैं- ‘बस कर यार अब क्या हंसा-हंसा कर मार ही डालेगा।
Author | Mahendra Ajnabi |
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ISBN | 8128808508 |
Pages | 160 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128808508 |
हास्य रस एक लंबे समय से तथाकथित बुदि्धजीवि साहित्यकारों में हेय दृष्टि से देखा जाता है। उसे मंचों पर अश्लीलता, फूहड़पन, आशालीनता, लफ्फाजी के द्वारा श्रोताओंको प्रभावित करने के दोष से समाचार पत्रों में दंडित किया जाता है और आजकल कवि सम्मेलनों की व्यावसायिकता से प्रभावित होकर कुछ कवि ऐसा करने में जुट भी गए हैं। किन्तु महेन्द्र अजनबी इन दोषों से मुक्त एक ऐसा निष्कलुष कवि हैं, जिसने अपनी सार्थक शुभ कविताओं से काव्य-मंच को गरिमा प्रदान की है। आरम्भ से ही इस कवि की वाक्पटुता, शब्द-चयन, आलंकारिक प्रयोग, सहज-सरल-शालीन भाषा तथा विषय के प्रति न्यायपूर्ण संगति स्वाभाविक रूप से स्वत समुदे्वलित होती रही है उसके काव्य संकलन का शीर्षक ‘हंसा-हंसा के मारूंगा’ वैसे विरोधाभास पैदा करता है किन्तु उसके अंतर्निहित जो सरगर्भित अर्थ है, उसकी गहनता में जाकर सोचें तो यह शीर्षक बहुत ही महत्वपूर्ण और साभिप्राय है। हंसाना और वह भी शिष्ट शैली और वाक्यांश से, सरल काम नहीं है। स्मित, मुस्कान, ठहाके से लेकर अट्टहास तक पहुंचाकर लोट-पोट कर देने की स्थिति तक, अजनबी की कविताएं श्रोताओंको ही नहीं, मंच के कवियोंको भी इतने ही आनंद से आन्दोलित कर देती हैं कि वे कह उठते हैं- ‘बस कर यार अब क्या हंसा-हंसा कर मार ही डालेगा।
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