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हर हाल में खुश है

75.00

अल्‍हड़ जी अपने भावों को बहुत ही सहजता ही सहजताके साथ, सरल भाषा में, छंदों में इस प्रकार ढाल देते हैं कि वह आपके मन के सरोवर में पहुंचकर कब उसे सुवासित करने लगे इसका पता स्‍वयं आपको भी नहीं लगा पाता। कविता उनके लिए मंच पर की जाने वाली प्रार्थना है। उनकी कविताओं में फूलों की महक भी है और कांटों की चुभन भी। लेकिन ये चुभन किसी ऐसे कांटे की नहीं है जो किसी बेकसूर के पांवों को घायल कर बल्कि ये वो कांटा है, जिससे आप अपने पांवों में चुभे दूसरे कांटोंको निकाल सकते हैं। समाज उनकी कविताओं की प्रयोगशाला है। उनके कवि मन की कोमल कल्‍पनाएं जब यथार्थ की पथरीली जमीन से टकराती हैं तो तीक्ष्‍ण व्‍यंग्‍य की व्‍युत्‍पत्ति अचानक ही हो जाती है। जिन सामाजिक रूढ़ियों, आर्थिक दुश्‍चिन्‍ताओं राजनीतिक विडम्‍बनाओं, प्रशासनिक विसंगतियों तथा क्षणभंगुर जीवन की विद्रपताओं ने उनके अतंर्मन को भीतर तक कचोटा है, वे उनकी कविताओं का कच्‍चा चिट्रठा है। इसलिए इस कच्‍चे चिट्ठे को वे अपनी कविताओं में नये-नये तरीकों से प्रस्‍तुत करते रहते हैं

Additional information

Author

Praveen Shukla

ISBN

8128813560

Pages

160

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8128813560

अल्‍हड़ जी अपने भावों को बहुत ही सहजता ही सहजताके साथ, सरल भाषा में, छंदों में इस प्रकार ढाल देते हैं कि वह आपके मन के सरोवर में पहुंचकर कब उसे सुवासित करने लगे इसका पता स्‍वयं आपको भी नहीं लगा पाता। कविता उनके लिए मंच पर की जाने वाली प्रार्थना है। उनकी कविताओं में फूलों की महक भी है और कांटों की चुभन भी। लेकिन ये चुभन किसी ऐसे कांटे की नहीं है जो किसी बेकसूर के पांवों को घायल कर बल्कि ये वो कांटा है, जिससे आप अपने पांवों में चुभे दूसरे कांटोंको निकाल सकते हैं। समाज उनकी कविताओं की प्रयोगशाला है। उनके कवि मन की कोमल कल्‍पनाएं जब यथार्थ की पथरीली जमीन से टकराती हैं तो तीक्ष्‍ण व्‍यंग्‍य की व्‍युत्‍पत्ति अचानक ही हो जाती है। जिन सामाजिक रूढ़ियों, आर्थिक दुश्‍चिन्‍ताओं राजनीतिक विडम्‍बनाओं, प्रशासनिक विसंगतियों तथा क्षणभंगुर जीवन की विद्रपताओं ने उनके अतंर्मन को भीतर तक कचोटा है, वे उनकी कविताओं का कच्‍चा चिट्रठा है। इसलिए इस कच्‍चे चिट्ठे को वे अपनी कविताओं में नये-नये तरीकों से प्रस्‍तुत करते रहते हैं

ISBN10-8128813560

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