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Prem Hai Dwar Satya Ka (प्रेम है द्वार सत्‍य का)

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ओशो के प्रखर विचारों ने, ओजस्वी वाणी ने मनुष्यता के दुश्मनों पर, संप्रदायों पर, मठाधीशों पर, अंधे राजनेताओं पर, जोरदार प्रहार किया। लेकिन पत्र-पत्रिकाओं ने छापीं या तो ओशो पर चटपटी मनगढंत खबरें या उनकी निंदा की, भ्रम के बादल फैलाए। ये भ्रम के बादल आड़े आ गये ओशो और लोगों के। जैसे सूरज के आगे बादल आ जाते हैं। इससे देर हुई। इससे देर हो रही है मनुष्य के सौभाग्य को मनुष्य तक पहुंचने में।।

स्वभाव को लाओत्सु ताओ कहता है, पतंजलि कैवल्य कहते हैं, महावीर मोक्ष कहते हैं, बुद्ध निर्वाण कहते हैं। लेकिन तुम इसको चाहे कुछ भी नाम दो — इसका न कोई नाम है और न कोई रूप — यह तुम्हारे भीतर है वर्तमान, ठीक इसी क्षण में। तुमने सागर को खो दिया था क्योंकि तुम अपने स्व से बाहर आ गए थे। तुम बाहर के संसार में बहुत अधिक दूर चले गए थे। भीतर की ओर चलो। इसको अपनी तीर्थयात्रा बन जाने दो — भीतर चलो ISBN10-8171825281

प्रेम है द्वार सत्‍य का-0
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Prem Hai Dwar Satya Ka (प्रेम है द्वार सत्‍य का)

प्रेम है द्वार सत्य का” में ओशो ने प्रेम और सत्य के आपसी संबंध को गहराई से समझाया है। उनके अनुसार, प्रेम सत्य तक पहुँचने का सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है। यह पुस्तक पाठकों को प्रेम की सच्ची परिभाषा और उसके महत्व को समझने की दिशा में प्रेरित करती है।

About the Author

ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।

इस पुस्तक का मुख्य विषय क्या है?

प्रेम है द्वार सत्य का” का मुख्य विषय प्रेम और सत्य का आपसी संबंध है। ओशो के अनुसार, प्रेम के बिना सत्य की खोज अधूरी है, और प्रेम ही सत्य तक पहुँचने का मार्ग है।

ओशो प्रेम को सत्य का द्वार क्यों मानते हैं?

ओशो मानते हैं कि प्रेम एक ऐसा मार्ग है जो व्यक्ति को उसके अंतर्मन तक ले जाता है, जहाँ सत्य की खोज की जा सकती है। उनके अनुसार, प्रेम से ही व्यक्ति को अपनी असली पहचान और सत्य का बोध होता है।

ओशो का प्रेम और सत्य पर दृष्टिकोण क्या है?

ओशो का दृष्टिकोण है कि प्रेम और सत्य का संबंध अटूट है। प्रेम व्यक्ति को सत्य की ओर ले जाता है, और सत्य प्रेम के बिना अधूरा है। इस पुस्तक में उन्होंने इस दृष्टिकोण को विस्तार से समझाया है।

क्या यह पुस्तक प्रेम के आध्यात्मिक पहलुओं पर आधारित है?

हां, यह पुस्तक प्रेम के आध्यात्मिक पहलुओं पर केंद्रित है। ओशो ने प्रेम को सिर्फ एक भावनात्मक अनुभव नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा बताया है, जो व्यक्ति को सत्य तक पहुँचाती है

ओशो ने प्रेम की परिभाषा कैसे की है?

ओशो ने प्रेम को स्वतंत्रता, स्वीकृति और अहंकारहीनता के रूप में परिभाषित किया है। उनके अनुसार, सच्चा प्रेम वह है जो किसी अपेक्षा के बिना होता है और व्यक्ति को उसकी आंतरिक शांति की ओर ले जाता है

क्या यह पुस्तक प्रेम के माध्यम से सत्य की खोज के लिए एक मार्गदर्शिका है?

हां, यह पुस्तक प्रेम के माध्यम से सत्य की खोज के लिए एक मार्गदर्शिका है। ओशो ने इसे प्रेम के जरिए सत्य तक पहुँचने का सरल और प्रभावी तरीका बताया है।

Additional information

Weight 710 g
Dimensions 22.86 × 15.31 × 2.89 cm
Author

Osho

ISBN

8171825281

Pages

168

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8171825281